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श्री सठिया जैन ग्रन्थमाला के दक्षिण में और निपध पर्वत के उत्तर में भी पर्वत और नदियों से विभक्त आठ विजय क्षेत्र हैं । इनके पश्चिम में सोमनम पर्वत
और पूर्व में दक्षिण सीतामुख वन है । अपरविदेह भी पूर्व विदेह की तरह सीतोदा महानदी द्वारा दो भागों में विभक्त है । सीतोदा महानदी के दक्षिण में और निपध पर्वत के उत्तर में चार पर्वत
और तीन नदियों से विभक्त आठ विजय क्षेत्र हैं । इनके पूर्व में विद्युत्प्रभ नामक पर्वत है और पश्चिम में दक्षिण सीतोदा मुखवन है। सीतोदा के उत्तर में और नीलवन्त.पर्वत के दक्षिण में भी क्रमशः पर्वत और नदियों से विभक्त आठ विजय क्षेत्र हैं। इनके पूर्व में गन्धमादन पर्वत और पश्चिम में उत्तर सीतोदा मुखवन है। इस प्रकार पूर्व और अपरविदेह में बत्तीस विजय क्षेत्र हैं। ये क्षेत्र उत्तर दक्षिण में लम्बे और पूर्व पश्चिम में चौड़े हैं । ये आयत चतुष्कोण है इसलिये पल्यं क संस्थान वाले हैं। प्रत्येक विजय वैतादय पर्वत एवं दो नदियों से विभाजित होकर छः खण्ड वाला है। सीता के उत्तर की तरफ तथा सीतोदा के दक्षिण की तरफ के विजयों में गंगा और सिन्धु नदियां हैं और सीता के दक्षिण की तरफ एवं सीतोदा के उत्तर की तरफ के विजयों में रक्का और रक्तवती नाम की नदियाँ हैं।
सीता महानदी के उत्तर की ओर के आठों विजय, मेरु पर्वत से ईशानकोन में स्थित गजदंत के आकार वाले माल्यावान पर्वत से पूर्व में हैं। ये आठों विजय और इनके विभाजक पर्वत और नदियाँ इस क्रम से हैं-कच्छविजय, चित्रकूट पर्वत,सुकच्छ विजय ग्राहावती नदी, महाकच्छ विजय, ब्रह्मकूट पर्वत, कच्छावती विजय, द्राहावती नदी, आपत विजय, नलिनीकूटपर्वत, मंगलावर्त्त विजय, पंकावती नदी, पुष्कलावत विजय, एक शैलकूट पर्वत, पुष्कलावती विजय । विजय क्षेत्रों की राजधानियों के नाम क्रमश: ये है