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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवां भाग
के मायालु स्वभाव से सुपरिचित हैं ऐसे भुक्तभोगी एवं बुद्धिसम्पन्न व्यक्ति भी मोह वश पुनः स्त्रियों के वशवर्ती हो जाते हैं।
(२१) स्त्री सम्बन्ध का ऐहिक पुरा परिणाम-परस्त्री से सम्बन्ध रखने वाले विषयान्ध पुरुषों के हाथ पैर का छेदन किया जाता है। उनकी चमड़ी एवं मांस काटे जाते हैं । वे अग्नि में पाये जाते हैं तथा चमड़ी छील कर उनके नमक भरा जाता है।
(२२) परस्त्री सम्बन्ध के दण्ड स्वरूप ये लोग कान नाक और काठ का छेदन सहन करते हैं। इस तरह यहीं पर स्वकृत पापों से सन्तप्त होकर भी ये पापी यह नहीं कहते कि अब हम ऐसा कुकार्य नहीं करेंगे।
(२३) स्त्रियों के लिये जो ऊपर कहा गया है वह गुरु महाराज से सुना है, लोगों का भी यही कहना है। स्त्री स्वभाव का निरूपण करने वाले वैशिक कामशास्त्र में भी बताया है कि 'मैं अकार्यन करूंगी' यह मंजूर कर के भी स्त्रियाँ विपरीत याचरण करती हैं।
(२४) स्त्रियाँ मन में कुछ सोचती हैं, वचन से कुछ और कहती हैं एवं कार्य और ही करती हैं। स्त्रियों को बहुत माया वाली जान कर साधु उन पर विश्वास न करे ।
(२५) नवयौवना स्त्री विचित्र वस्त्र अलंकार पहन कर साधु के पास आती है और छलपूर्वक कहती है-हे भगवन् ! मैं घर के मंझटों से तंग आगई हूं। गृहस्थी छोड़ कर मैं संयम का पालन करूँगी । अतएव कृपा कर आप मुझे धर्म सुनाइये ।
(२६) कोई स्त्री श्राविका का बहाना कर साधु के पास श्राकर कहती है-महाराज ! मैं श्राविका हूं और इस नाते आपकी साधमिणी हूँ। इस प्रकार प्रपंच कर वह साधु से परिचय बढ़ाती है। फल स्वरूप अग्नि के समीप रहे हुए लाख के घड़े की तरह विद्वान साधु भी स्त्री के संवास में रहकर शिथिल विहारी हो जाता है।