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________________ बोल नं० ६० गृहस्थ धर्म के पैतीस गुण ७४ ३६ वां बोल:- ८७- १३३ (२) नमस्कार सूत्र में सिद्ध से पहले अरिहन्त को क्यों नमस्कार किया गया ? (३) ६८१ सूयगडांग सूत्र के नवें धर्माध्ययन की छत्तीस गाथाएं क्या है ? ६८२ आचार्य के छत्तीस गुण ६४ (६) मन:पर्ययदर्शन नहीं ६८३ प्रश्नोत्तर ३६:- ६८ ८७ है फिर मन:पर्ययज्ञानी (१) नमस्कार सूत्र में सिद्ध और साधु के दो ही पद कह कर पाँच पद क्यों कहे १ · (४) नमस्कार उत्पन्न है या अनुत्पन्न | यदि उत्पन्न ? है तो उसके उत्पादक निमित्त क्या हैं ? पृष्ठ बोल नं० ६५ ६८ [६] १०० नमस्कार का स्वामी नमकारक है या पूज्य है ? १०१ (५) तीर्थकर दीक्षा लेते समय किसे नमस्कार करते हैं ? (६) क्या परमावधिज्ञानी १०२ पृष्ठ चरम शरीरी होते हैं १ १०३ (७) अनुत्तरविमान वासी देव शंका होने पर किसे पूछते हैं और कहाँ से ११०३ (८) मन:पर्ययज्ञान का विषय अनन्तप्रदेशी स्कन्ध जानता और देखता है, यह कैसे कहा ? १०५ (१०) चक्षु की तरह श्रोत्र यदि इन्द्रियाँ भी दर्शन में कारण हैं फिर चक्षुदर्शन की तरह श्रोत्र आदि दर्शन क्यों नहीं कहे गये ? (११) सर्वविरतिरूप सामायिक वाले को पोरिसि आदि के प्रत्याखानों की क्या आवश्यकता है १ १०७ १०६ (१२) क्या साधु के सत्य १०४ वचन में विवेक होना चाहिये १ १०७ (१३) साधु के लिये ग्लान साधु की सेवा करना आवश्यक है या उसकी
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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