________________
श्री सेठिया जैन मन्धमाला
(२) अमिभूति-ज्ञानावरण आदि कर्म है या नहीं। (३) वायुभूति-शरीर और जीव एक हैं या भिन्न भिन । (४) व्यक्त स्वामी-पृथ्वी आदि भूत हैं या नहीं। (५) सुधर्मा स्वामी-इस लोक में जो जैसा है, परलोक में भी वह वैसा ही रहता है या नहीं। (६) मंडितपुत्र-बंध और मोक्ष हैं या नहीं। ) (७) मौर्यपुत्र--देवता हैं या नहीं। (८) अकम्पित-नारकी हैं या नहीं। (६) अचलमाता पुण्य ही बढ़ने पर सुख और घटने पर दुःख का कारण होजाता है, या दुख का कारण पाप पुण्य से अलग है। (१०) मेतार्य आत्मा की सत्ता होने पर भी परलोक है या नहीं। (११) प्रभास मोक्ष है या नहीं।
समी गणधरों के संशय और उनका समाधान विस्तार पूर्वक नीचे लिखे अनुसार है[१] इन्द्रभूति शास्त्रार्थ के लिए आए हुए इन्द्रभूति को देख कर भगवान ने प्रेम मरे शब्दों में कहा आयुष्मन इन्द्रभूते। तुम्हारेमन में सन्देह है कि आत्मा है या नहीं। दोनों पक्षों में युक्तियों मिलने से तुम्हें ऐसा सन्देह हुआ है। प्रात्मा का अभाव सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित युक्तियाँ है
आत्मा नहीं है, क्योंकि प्रत्यक्ष का विषय नहीं है। जैसे आकाश के फूल । जो वस्तु विद्यमान है वह प्रत्यक्ष से जानी जा सकती है
जैसे घटापात्मा प्रत्यक्ष से नहीं जानी जा सकती इसलिए नहीं • है। 'परमाणु विधमान होने पर भी प्रत्यक्ष से नहीं जाने जा सकते'
यह कहना ठीक नहीं है। क्योंकि घटादि कार्यों के रूप में परिणत होने पर वे प्रत्यक्ष से जाने जा सकते हैं।
प्रात्मा अनुमान से भी नहीं जाना जा सकता । प्रत्यक्ष सेदो