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श्री नैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग
और न दूसरों से करवाता है किन्तु अनुमति देने का उसे त्याग नहीं होता । इस पडिमा का काल जघन्य एक दो या तीन दिन है उत्कृष्ट नौ मास है। (१०) उहिट्ठ भत्तपरिएकाए-दसवीं पडिमाधारक श्रावक उप. रोक्त सब नियमों का पालन करता है और वह उद्दिष्ट भक्त का भी त्याग कर देता है । उस्तरे (चुर से) मुण्डन करा देता है अथवा शिखा (चोटी) रखता है। किसी विषय में एक चार या अनेक बार पूछने पर वह दो प्रकार का उत्तर दे सकता है। यदि वह उस पदार्थ को जानता है तो कह सकता है कि मैं इसको जानता हूँ । यदि नहीं जानता हो तो कह दे कि मैं नहीं जानता । उसका कोई सम्बन्धी जमीन में गड़े हुए धन आदि के विषय में पूछे तो भी उसे हाँया ना के सिवाय कुछ जवाब न दे। इस पडिमा की अवधि एक दो या तीन दिन है और उत्कृष्ट अवधि दस मास है। (११) समणभूए-ग्यारहवीं पडिमाधारी सर्व धर्म विषयक रुचि रखता है। उपरोक्त सब नियमों का पालन करता है। शिर के बालों को उस्तरे से (तुर से) मुंडवा देता है अथवा लुञ्चन करता है अर्थात् शनि हो तब तो उसे लुचन ही करना चाहिए और शक्ति न हो तो उस्तरे से मुंडन करा ले। साधु का वेश धारण करे। साधु के योग्य भएडोपकरण आदि उपधि धारण कर श्रमण निग्रंथों के लिये प्रतिपादित धर्म का निरतिचार पालन करता हुआ विचरे । मार्ग में युगप्रमाण भूमिको आगे देखता हुआ चले। यदि मार्ग में त्रस प्राणी दिखाई देंतो उन जीवों को बचाते हुए पैरों को संकुचित कर चले अर्थात् उन जीवों को किसी प्रकार की पीड़ा न पहुँचाता हुआईर्यासमिति पूर्वकगमन क्रिया में प्रवृत्ति करे किन्तु जीवों को बिना देखे सीघा गमन न करे। ग्यारहवीं पडिमाधारी की सारी क्रियाएं साधु के समान होती है अतः प्रत्येक क्रिया में यतना पूर्वक प्रवृत्ति करे।