________________
श्री सठिया जैन ग्रन्थमाला को अङ्गीकार कर सकता है। (४) अब्रह्म से निवृचि रूप शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन भी प्रारम्भ परिग्रह को छोड़े बिना नहीं हो सकता। (५) प्रारम्भ और परिग्रह को छोड़े बिना पृथ्वीकाय आदि छ। कायों की रक्षारूप संयम का पालन भी नहीं हो सकता। (६) आश्रव (जिससे कर्मों का बन्धन होता है) द्वारों का निरोधरूप संवर भी प्रारम्भ परिग्रह के त्याग विना नहीं हो सकता। ..७) अविपरीत रूप से पदार्थों को बतलाने वाला अर्थात् संशय रहित निश्चित ज्ञान प्रामिनिबोधिक कहलाता है। इसके इन्द्रिय निमित्त और अनिन्द्रियनिमित्त ऐसे दो भेद हैं। इस ज्ञान की प्राप्ति
भी प्रारम्भ परिग्रह को छोड़े विना नहीं हो सकती। • (८) श्रुतज्ञान, (६) अवधिज्ञान, (१० मनापर्ययज्ञान और (११ केवल ज्ञान की प्राप्ति भी आरम्भ परिग्रह को छोड़े बिना नहीं हो सकती।
(गणाग २ उ०१ सूत्र६४) ७७४- उपासक पडिमाएं ग्यारह
साधुओं की उपासना (सेवा) करने वाला उपासक कहलाता है अभिग्रह विशेष को पडिमा (प्रतिमा) कहते हैं। उपासक (श्रावक) का अभिग्रह विशेष (प्रतिज्ञा ) उपासक पडिमाएं कहलाती हैं। स्यारह पडिमाएं ये हैं(१).दंसण सावए- पहली दर्शन पडिमा है। इसमें श्रमणोपासक 'रायाभियोगेणं' आदि आगारों रहित सम्यक्त्व का निरतिचार पालन करता है अर्थात् क्रियावादी अक्रियावादी नास्तिक आदि वादियों के मतों को भली-प्रकार जान कर विधि पूर्वक सम्यग्दर्शन का पालन करता है। इस पडिमा का आराधन एक मास तक किया जाता है।- ... (२) कयव्वयकम्मे- दूसरी पडिमा में, सब प्रकार के धर्मों की