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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग अर्थात्-राग द्वेष को जीतने वाले जिनेन्द्र भगवान् द्वारा कही । हुई बातें सर्वथा सत्य हैं । बुद्धिमान व्यक्ति उनमें सन्देह न करे क्योंकि सन्देह अनर्थ का मूल है।
नोट उपर लिखी कथा ज्ञाताधर्म कथाङ्ग सूत्र,प्रथम श्रुतस्कन्ध के तीसरे अध्ययन में भी आई है।
(६) सम्यक्त्व में कांक्षादोष के लिए कुशध्वज राजा का दृष्टान्त
कुशस्थल नामक नगर में कुशध्वज राजा राज्य करता था। उसका कुशाग्रबुद्धि नामक मंत्री था । एक बार कोई व्यक्ति राजा के पास उन्टी शिक्षा वाले घोड़े उपहार रूप में लाया। घोड़ों की शिक्षा का हाल किसी को कहे बिना ही उसने घोड़े भेंट कर दिये।
कुतूहलवश राजा और मत्री उन पर सवार होकर मैदान में गए । गजा और मत्री घोड़ों को रोकने के लिए लगाम खींचते थे किन्तु घोड़े इससे तेज होते जाते थे। मैदान से निकल कर वे. जंगल की ओर दौड़ने लगे । अन्त में गेमों ने थक कर लगाम ढीली कर दी। घोड़े खड़े हो गए । पर्याण (साज सामान) के उतारते ही वे नीचे गिर पड़े।
राजा और मन्त्री भूख तथा प्यास से व्याकुल हो रहे थे। पानी की खोज में फिरते हुए उन्होंने एक पक्षियों की पंक्ति को देखा। उससे पानी का अनुमान करके वे उसी ओर चले। कुछ दूर जाने पर उन्हें निर्मल पाना से भरा हुआ जलाशय दिखाई दिया । वहाँ पहुँच कर उन्होंने स्नान किया । थोड़ी देर विश्राम करकेपास वाले वृक्षों के फल खाकर उन्होंने अपनी भूख मिटाई तथा पत्तों की शय्या बना कर सो गए।
दूसरे दिन उठ कर अपने नगर की भोर चले । रास्ते में उनके खोजने के लिए सामने आते हुए सैनिक मिले।
नगर में पहुंचते ही राजा ने खाने के लिए विविध प्रकार के