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श्री जैन सिद्धान्त वोल सग्रह, चौथा भाग ४३६ भय से उसने अनशन ले लिया। समाधिपूर्वक काल करके वह देवलोक में गया । वहाँ पहुँचने पर भी जुगुप्सा दूर नहीं हुई। ___ उसके देहान्त से स्त्री को भी वैराग्य हो गया। लज्जा के कारण अपने मन्त्र प्रयोग की बात किसी से विना कहे ही उसने दीक्षा ले: ली। बहुत दिनों तक दीक्षा पाल कर वह काल कर गई। पूर्वकृत सुकृत के कारण वह भी देवलोक में उत्पन्न हुई । देवलोक में दोनों चिर काल तक वहाँ के भोग भोगते रहे। ___ भरत क्षेत्र में मगध नाम का रमणीय देश है। उसमें ऊँचे ऊँचे प्रासादों, विशाल दुकानों और दूसरी सब बातों से रमणीय तथा समृद्ध राजगृह नाम का नगर है वहाँ वाहन, धन, धान्य और सब प्रकार की सम्पत्ति वाला धन्ना सार्थवाह रहता था। उसकी भार्या का नाम भद्राथा । उसके चिलाती नाम की दासी थी । यज्ञदेव काजीव देव भव से चब कर जुगुप्सा दोष के कारण चिलाती दासी के पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ। उसका नाम चिलातीपुत्र रक्खा गया । वह धीरे धीरे बढने लगा।
कुछ दिनों बाद उसकी स्त्री देव भत्र से चत्र र भद्रा सेअनी के गर्भ से पुत्री रूप में उत्पन्न हुई । सेठ के पाँच पुत्र पहले से थे। पुत्री का नाम सुपुमा रक्खा गया। सेठ ने चिलातीपुत्र को उसे खिलाने का काम सौंप दिया। सुपुमा को खिलाते समय वह बुरी चेष्टाएं करने लगा। एक दिन ऐसा करते हुए उसे सेठ ने देख लिया और उसे दुःशील समझ कर घर से निकाल दिया। ___ अवारागर्द घूमता हुआ चिज्ञानीपुत्र उसीनगर के पास सिंहागुहा. पल्ली नामक चोरों की वस्ती में जा पहुंचा। वहाँ जाकर वह चोरों के साथ लूट, मार, चोरी आदि करने लगा। इन कामों में वह बहुत 'तेज था । दूसरे को लूटते समय उसे कभी दया न आती। वह बहुत कर तथा दृढ़प्रहारी बन गया। इन विशेषताओं के कारण चोरों