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भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला
पूर्व हो गया । मेरु पर्वत आदि के स्वप्न जो मैंने, पिताजी ने और सेठजी ने देखे थे तथा जिन के लिए सभा में विचार किया गया था उनका भी. वास्तविक फल यही है कि एक वर्ष के अनशन के कारण भगवान् का शरीर सूख रहा था। उनका पारणा कराकर कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सहायता की गई है। यह सुन कर श्रेयांसकुमार की प्रशंसा करते हुए सभी अपने अपने स्थान पर चले गए ।
पूर्वभव स्मरण के कारण श्रेयांसकुमार में श्रद्धा अर्थात् सम्यक्त्व प्रकट हुई। इसी लिए उसने भगवान् को भक्ति पूर्वक दान दिया । तवों में श्रद्धा रखता हुआ वह चिर काल तक संसार के सुख भोगता रहा । भगवान् को केवलज्ञान उत्पन्न होने पर उसने दीक्षा अङ्गीकार कर ली । निरतिचार संयम पालते हुए घनघाती कर्मों का क्षय करके निर्मल केवलज्ञान को प्राप्त किया। आयुष्य पूरी होने पर सभी कर्मों का नाश करके मोक्ष को प्राप्त किया ।
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( नवपद बृहद्वृत्ति गाथा १२८ ) (२) उपदेश से सम्यक्त्व प्राप्ति के लिए चिलाती पुत्र की कथाचितिप्रतिष्ठित नगर में जितशत्रु राजा राज्य करता था । उस के सारी रानियों में प्रधान धारिणी नाम की पटरानी थी। उसने राज्य का भार मन्त्री को सौंप दिया। स्वयं दोगुन्दक देवों के समान विषय सुखों में लीन रहने लगा। उसी नगर में यज्ञदेव नाम का एक द्विजपुत्र रहता था। वह चौदह विद्याओं में पारंगत था । अपने को बड़ा भारी पण्डित मानता था । बड़ा घमण्डी, श्रुतियों का पाठ करने वाला और जातिगर्वित था। नगर में साधुओं को देख कर उन की हंसी तथा विविध प्रकार से जिनशासन का अवर्णवाद किया करता था । लोगों के सामने कहता कि ये लोग गन्दे होते हैं । इन मैं शुचिपना बिल्कुल नहीं होता ।
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