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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
किया ।छ: दिन तक उनका अनशन चलता रहा। माघ कृष्णा त्रयोदशी के दिन अभिजित नक्षत्र का चन्द्र के साथ योग होने पर शेष ! चार अघाती कर्मों का नाश करके भगवान् मोक्ष में पधार गये । उस समय इस अवसर्पिणी काल का तीसरा आरा समाप्त होने में तीन वर्ष साढे आठ महीने बाकी थे। जिस समय भगवान् मोक्ष पधारे उसी समय में दूसरे १०७ पुरुष और भी सिद्ध हुए । भगवान के साथ अनशन करने वाले दस हजार मुनि भी उसी नक्षत्र में सिद्ध हुए जिसमें भगवान् मोक्ष पधारे थे। इन्द्र तथा देवों ने सभी का अन्तिम संस्कार किया। फिर नन्दीश्वर द्वीप में जाकर सभी देवी देवताओं ने भगवान् का निर्वाण कल्याण मनाया।
(त्रिषष्टि शनाका पुरुषचरित्र, प्रथम पर्व) ८२१-सम्यक्त्व के लिए तेरह दृष्टान्त
काऊण गंठिभेय सहसम्मुइयाए पाणिणो केई । परवागरणा अराणे लहंति सम्मत्तवररयणं ॥ अर्थात्-अनन्त संसार में भटकता हुआ भव्य जीव जब ग्रन्थि भेद करता है अर्थात् कर्मों की स्थिति को घटा कर मिथ्यात्व की गांठ को खोल डालता है, उस समय उसे सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है। संसार में सम्यक्त्व सभी रत्नों में श्रेष्ठ है । शास्त्रों में कहा है
सम्यक्त्वरत्नान्न परं हिरत्नं, सम्यक्त्वबन्धोर्न परोस्ति बन्धुः। सम्यक्त्वमित्रान परं हि मित्रं,
सम्यक्त्वलाभान परोस्ति लाभः ॥ अर्थात्-सम्यक्त्व रूप रत्न से श्रेष्ठकोई रत्न नहीं है । सम्यक्व रूपी वन्धु से बड़ा कोई बन्धु नहीं है । सम्यक्त्व रूपी मित्र से पढ़ कर कोई मित्र नहीं है और सम्यक्त्व रूपी लाम से उत्तम कोई लाम नहीं है।