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________________ भी सेठिया जैन प्रन्धमाला ८१६-असंस्कृत अध्ययनकी तेरह गाथाएं जीवन चञ्चल है। पूर्व संचित कर्मों के फल भोगने ही पड़ते हैं। इन दोनों बातों का वर्णन उत्तराध्ययन सूत्र के चौथे असंस्कृत नाम के अध्ययन में बड़ी सुन्दरता के साथ किया गया है । इस अध्ययन में कुल तेरह गाथाएं हैं। इनका भावार्थ नीचे दिया जाता है(१) गौतम स्वामी को लक्ष्य करके भगवान् फरमाते हैं हे गौतम ! टूटा हुआ जीवन फिर जुड़ नहीं सकता इसलिये एक समय का भी प्रमाद मत कर । वृद्धावस्था से ग्रसित पुरुष का कोई शरणभूत नहीं होता, ऐसा तू विचार कर । प्रमादी और हिंसक घने हुए विवेक शून्य जीव किस की शरण में जायेंगे ? (२) कुबुद्धि ( अज्ञान) के वश होकर जो मनुष्य पाप कर्मों द्वारा धन प्राप्त करते हैं, वे कर्मबन्ध में बंधे हुए और वैर भाव की शृङ्खला में जकड़े हुए मृत्यु के समय धन आदि को यहीं छोड़ कर नरक आदि गतियों में चले जाते हैं। (३) संघलगाते हुए पकड़ा गया चोर जिस तरह अपने कर्म से पीड़ित होता है उसी तरह पाप कर्म करने वाले जीव इहलोक और परलोक में अपने अपने कर्मों द्वारा पीड़ित होते हैं क्योंकि संचित कर्मों को भोगे विना छुटकारा नहीं होता। जो कर्मों का कर्ता है वही उनका भोका है। कर्ता एक हो और मोक्का कोई दूसरा हो ऐसा नहीं हो सकता। इसी न्याय से इस लोक में जिन कर्मों का फल भोगना बाकी रहता है उनको दूसरे भव में मोगने के लिये उस आत्मा को पुनर्जन्म धारण करना ही पड़ेगा। (४) संसारी जीव दूसरों के लिये अर्थात् अपने कुटुम्बी जनों के लिये जो पाप कर्म करता है, जब वे पाप कर्म उदय में आते हैं तब उसे अकेले को ही वे भोगने पड़ते हैं। उसके धन में भागीदार होने वाले भाई चन्धु, पुत्र, स्त्री आदि उन कर्मों के भागीदार नहीं होते
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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