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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
विना नमक का है, यह मुझे मालूम नहीं । तुम्हारी मां ने बनाया है। पुत्रवधू ने नमक की बात बुढ़िया से कही । बुढ़िया उस समय कपड़ा काट रही थी। वह बोली--कपड़ा चाहे पतला हो या मोटा। बूढ़े का कुर्ता तो बन ही जायगा । बूढ़े के घर आने पर बुदिया ने पुत्रवधू के पूछने की बात कही । बूढा सूखने के लिए डाले हुए तिलों की रक्षा कर रहा था। इस लिए डरते हुए कहा-तुम्हारी सौगन्ध, अगर मैंने एक भी विल खाया हो। ___ इसी प्रकार जहाँ एक वचन हो वहाँ द्विवचन का अर्थ करना, जहाँ द्विवचन हो वहाँ एक वचन का अर्थ करना वचन से अननुयोग है।
(५) ग्रामेयक का उदाहरण--किसी नगर में एक महिला रहती थी। उसके पति का देहान्त हो गया। नगर में ईंधन, जल
आदि का कष्ट होने से वह अपने छोटे बच्चे को लेकर गाँव में चली गई । उसका पुत्र जब बड़ा हुआ तो उसने पूछा-मां! मेरे पिता क्या काम किया करते थे? 'राजा की नौकरी। मां ने जवाब दिया। 'मैं भी उसे ही करूँगा। पुत्र ने उत्सुकता से कहा।
मां ने कहा-बेटा ! नौकरी करना बड़ा कठिन है । उसके लिए पड़े विनय की आवश्यकता है।
विनय किसे कहते हैं ? पुत्र ने पूछा। । जो कोई सामने मिले, उसे प्रणाम करना । सदा नम्र बने रहना। प्रत्येक कार्य दूसरे की इच्छानुसार करना। यही सब विनय की बातें है। माता ने उसे समझाते हुए कहा। ___'मैं ऐसा ही करूंगा।' यह कह कर वह नौकरी करने के लिए राजधानी की ओर चला।
मार्ग में चलते हुए उसने कुछ शिकारियों को देखा। वे वृक्षों की ओट में छिपे हुए थे। वहाँ पाए हुए कुछ हिरणों पर निशाना