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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
दूसरा श्रुतस्कन्ध इसका नाम सुखविपाक है। इसमें दस अध्ययन हैं। दसों में दस व्यक्तियों की कथाएँ हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) सुबाहुकुमार (२) भद्रनन्दीकुमार (३) सुजातकुमार (४) सुवासकुमार (५) जिनदासकुमार (६) वैश्रमणकुमार (७) महावलकुमार (0) भद्रनन्दीकुमार (8) महत्चन्द्रकुमार (१०) वरदचकुमार।
इन व्यक्तियों ने पूर्व भव में सुपात्र को दान दिया था जिसके फलस्वरूप इस भव में उत्कृष्ट ऋद्धि की प्राप्ति हुई और संसार परित्त (हल्का) किया। ऐसी ऋद्धि का त्याग करके इन सभी ने संयम अंगीकार किया और देवलोक में गए ।आगे मनुष्य और देवता के शुभ भव करते हुए महाविदेह क्षेत्र से मोक्ष प्राप्त करेंगे।सुपात्र दान का ही यह माहात्म्य है, यह इन कथाओं से भली प्रकार ज्ञात होता है। इन सब में सुबाहुकुमार की कथा बहुत विस्तार के साथ दीगई है। शेष नौ कथाओं के केवल नाम दिए गए हैं । वर्णन के लिए सुबाहुकुमार के अध्ययन की भलामण दी गई है। पुण्य का फल कितना मधुर और सुखरूप होता है इसका परिचय इन कथाओं से मिलता है। प्रत्येक सुखाभिलाषी प्राणी के लिए इन कथाओं के अध्ययनों का स्वाध्याय करना परम आवश्यक है।
सुखविपाक और दुखविपाक दोनों की वीस कथाओं का विस्तृत वर्णन छठे भाग के बीसवें घोलसंग्रह बोल नम्बर ६१० में दिया गया है।