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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
सिद्धिक एकेन्द्रिय, सातवें शतक में नील लेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय, आठवें शतक में कापोत लेश्या वाले भवसिद्धिक एके- . न्द्रिय, नवे शतक में सामान्य रूप से अमवसिद्धिक एकेन्द्रिय, दसवें . शतक में कृष्ण लेश्या वाले अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय, ग्यारहवें शतक में नील लेश्या वाले अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय और बारहवें शतक में कापोत लेश्या वाले प्रभवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीवों के कर्मबन्ध और वेदन आदि का कथन किया गया है। प्रत्येक शतक के ग्यारह. ग्यारह उद्देशों में अनन्तरोपपन्नक परम्परोपपन्नक आदि की अपेक्षा से वर्णन किया गया है। ..
चौतीसवाँ शतक चौतीसवे शतक के अन्तर्गत बारह शतक हैं। प्रत्येक शतक में ग्यारह ग्यारह उद्दशे है। इस प्रकार इसके भी कुल १३२ उद्देशे हैं। पहले शतक के पहले उद्देशे में निम्न विषय वर्णित हैं___ एकेन्द्रिय जीवों के पाँच मेद । पृथ्वीकाय के सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त चार मेद हैं। इनकी गति, विग्रहगति, गति और विग्रहगति का कारण, उपपात आदि का विस्तृत वर्णन है । दूसरे से ग्यारहवें उद्देशे तक प्रत्येक में क्रमशः अनन्तरोपपन्न परम्परोपपन्न आदि की अपेक्षा एकेन्द्रियों का वर्णन किया गया है। भागे दूसरे से बारहवें शतक तक तेतोसवें शतक की तरह वर्णन है।
पैतीसवाँ शतक इस शतक के अन्तर्गत बारह शतक हैं। एक एक शतक में ग्यारह ग्यारह उद्दशे हैं। जिनमें निम्न विषय वर्णित हैं-पहले शतक के पहले उद्देशे में १६ महायुग्म का वर्णन है। कृतयुग्मकृतयुग्म एकेन्द्रियों का उपपात, जीवों की संख्या, बन्ध, सातावेदनीय, असातावेदनीय, लेश्या, शरीरादि के वर्ण, अनुबन्ध काल, संवेध आदि का कथन किया गया है। दूसरे से ग्यारहवें उद्देशे तक प्रथम