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श्री सेठिया जेन प्रन्थमाला
उड़द, पाल, कुलत्थी, पालिसंदक, साटन और पलिमंथक इन , दस प्रकार के धान्य विशेषों का वर्णन इन दस उद्देशों में किया गया है। इसका सारा अधिकार पहले वर्ग के पहले उद्देशे में बताए गए शालि धान की तरह जानना चाहिए। • तीसरा वर्ग, (१--१०) उ०--इन दस उद्देशों में क्रम से अलसी, कुसुभ, कोद्रव, कांगणी, रात, तूअर, कोदूसा, सण, सरिसव
और मूलबीजक इन दस वनस्पति विशेषों का वर्णन है । इनमें मी पहले शालि उद्देशे की भलामण है।
चौथा वर्ग, (१-१०) उ०--बॉस, वेणु, कनक, कविंश, चारुवंश, दंडा, कंडा, विमा, चंडा, वेणुका और कल्याणी इन वनस्पतियों के मूल में उत्पन्न होने वाले जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? उत्तर के लिए पहले शालि उद्देशे की भलामण ।
पाँचवाँ वर्ग, (१-१०१3०-इतु (सेलडी, इन वाटिका,वीरण, इकड, ममास, सूठ,शर, वेत्र, तिमिर, शतपोरग और नड इन वनस्पतियों के मूल में उत्पन्न होने वाले जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? उत्तर के लिये पहले शालि उद्दशे की भलामण ।। _छठा वर्ग, (१-१०) उ०-सेडिय, मंतिय, दर्भ, कोतिय, दर्भाश, पर्वक, पोदेइल, अर्जुन, आषाढक, रोहितक, समु, अवखीर, भुस, एरंड, कुरुकुन्द, करकर, सुंठ, विभंग, मधुरयण, थुरग, शिल्पिक और सुकलितण, इन सब वनस्पतियों के मूल में उत्पन्न होने वाले जीवों की वक्तव्यता।
सातवाँ वर्ग, (१--१०) उ6--अम्ररुह, वायण, हरितक, वादलज, तृण, वत्थुलं, 'पोरक, मार्जारक, विल्ली, पालक, दगपिप्पली, दी, स्वस्तिक, शाकमड्डकी, मूलक, सरसव, अंविलशाक, जियंतग, इन सब वनस्पतियों के मूल में उत्पन्न होने वाले जीवों की वक्तव्यता।
आठवाँ वर्ग, (१-१०) उ०-तुलसी, कृष्ण, दराल, फणेजा,