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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, तीसरे भाग
सम्मतियाँ श्रीसौधर्म बृहत्तपागच्छीय भट्टारक श्रीमज्जैनाचार्य व्याख्यान वाचस्पति विजययतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज साहेब, ता० २-१-४२।
सर्वप्ररूपित जैनागम सूत्र सागर में श्राम हितकारक बोल-रलों का संग्रह अगाध है, उनका पार पाना शक्ति से परे है। सेठियानी ने उन में से चुन कर कुछ उपयुक्त बोलों का संग्रह 'श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह' नाम से खण्डशःप्रकाशित करना श्रारम्भ किया है। उसका तीसरा माग हमारे सामने है, जो प्रथम, द्वितीय भाग से कुछ अधिक बड़ा है। इसमें पाठ, नव और दस बोलों का संग्रह है। यह विशेष रुचिकर है। सरलता एवं अपनी सन धन में यह अद्वितीय है। सेठियानी का यह प्रयत्न सराहनीय है। भविष्य में साहित्यक दृष्टि से सर्व साधारण को विशेष लामकारक होगा।
अनेकान्त, सरसावा, अक्टूबर १९४२ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह-प्रथम भाग, द्वितीय भाग, सग्रहकर्ता-मेरोदाननी सेठिया बीकानेर । प्रकाशक-सेठिया पारमार्थिक संस्था, बीकानेर | पृष्ठ संख्या प्रथम माग ५१२, द्वितीय भाग ४७५ ।
इस अन्य में श्रागमादि ग्रन्थों पर से सुन्दर वाक्यों का संग्रह हिन्दी भाषा में किया हुआ है। दोनों भागों के बोलो (वाक्यों) का संग्रह ५५ है। ये बोल सग्रह श्वेताम्बर साहित्य के अभ्यासियों तथा विद्यार्थियों के लिए बड़े काम की चीन है। अन्य उपयोगी और संग्रह करने योग्य है।
सेठिया भैरोदानबी बीकानेर ने अपनी स्थावर सम्पत्ति का ट्रस्ट बालपाठशाला, विद्यालय, नाइटकालेन, कन्यापाठशाला, प्रन्यालय और मुद्रणालय, इन छ:सस्थाओं के नाम कर दिया है। उसी फंड से प्रस्तुत दोनों भागों का प्रकाशन हुआ है आपकी यह उदार वृत्ति और लोकोपयोगी कामों में दान की श्राम रुचि सराहनीय तथा अन्य धनिक श्रीमानों के लिए अनुकरणीय है।
परमानन्द जैन शाबी