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श्री जैन सिद्धान्त बोलसमह, चौथा भाग
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अजीव । त्रस, स्थावर । सयोनिक अयोनिक । सायु, निरायु । सेन्द्रिय, अनिन्द्रिय । सवेदक, अवेदक । सरूप, अरूप । सपुद्गल, अपुद्गल । संसारी, सिद्धाशाश्वत, अशाश्वत। आकाश, नोआकाश । धर्म, अधर्मीवन्ध, मोनापुण्य, पापाआश्रव, संवररावेदना, निर्जरा। दो जीव क्रियाएं- सम्यक्त्रक्रिया, मिथ्यात्वक्रिया। दो अजीव क्रियाएं-ईविहिकी, साम्परायिकी । दो क्रियाएं कायिकी, आधिकरणिकी। कायिकी के दो भेद-अनुपरतकायक्रिया, दुष्प्रयुक्तकायक्रिया। प्राधिकरणिकी के दो भेद-संयोजनाधिकरणिकी, निर्वतनाधिकरणिकी। दो क्रियाएं- प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी । प्राद्वपिकी के दो भेद-जीवप्रापिकी, अजीवप्राद्व पिकी पारितापनिकी के दो भेद- स्वहस्तपारितापनिकी, परहस्तपारितापनिकी। दो क्रियाएं-प्राणातिपातक्रिया, अप्रत्याख्यानक्रिया । प्राणातिपातक्रिया के दोमेद-स्वहस्तप्राणातिपातक्रिया, परहस्तप्राणातिपातक्रिया । अप्रत्याख्यानक्रिया के दो भेद-जीव अप्रत्याख्यानक्रिया, अजीव अप्रत्याख्यानक्रिया।दो क्रियाएं-प्रारम्भिकी, पारि
ग्रहिकी। प्रारम्भिकी के दो भेद-जीवारम्भिकी, अजीवारम्भिकी। .इसी तरह पारिग्रहिकी के भी दो भेद हैं। दो क्रियाएं-मायाप्रत्यया, मिथ्यादर्शनप्रत्यया । मायाप्रत्यया के दो भेद-पात्लभाववञ्चनता, परभाववञ्चनता। मिथ्यादर्शनप्रत्यया के दो भेद-ऊनातिरिक्तमिथ्यादर्शनप्रत्यया, तद्व्यतिरिक्तमिथ्यादर्शनप्रत्यया । दो क्रियाएंदृष्टिजा, पृष्टिजा । दृष्टिना के दो भेद-जीवदृष्टिजा, अजीवदृष्टिजा। इसी तरह पृष्टिजा के दो भेद हैं। दो क्रियाएं-भातीत्यिकी, सामन्तोपनिपातिकी। प्रातीस्यिकी के दो भेद-जीवप्रातीत्यिकी,अजीवपातीत्यिकी । इसी तरह सामन्तोपनिपातिकी के दो भेद हैं। दो क्रियाएं-स्वाहस्तिकी, नैसृष्टिकी । स्वाहस्तिकी के दो भेद-जीव स्वाहस्तिकी, अजीवस्खाहस्तिकी । इसी तरह नैसृष्टिकी के दो भेद