________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग
७६
-
में आना।
(३) श्री ठाणांग सूत्र ठाणांग या स्थानांग सूत्र तीसरा अंग है। इसमें जीव, अजीव, जीवाजीव, स्वसिद्धान्त, पर सिद्धान्त, स्वपरसिद्धान्त, लोक, अलोक, लोकालोक तथा पर्वत, द्वीप, हृद आदि भौगोलिक वस्तुओं का वर्णन है। इसमें एक भ्रुतस्कन्ध, दस अध्ययन, इक्कीस उद्देशे तथा इकीस समुद्दशे हैं। ठाणांग सूत्र में विषयों की व्यवस्था उनके भेदों के अनुसार की गई है, अर्थात् समान संख्याक मेदों वाले विषयों को एक ही साथ रक्खा है । एक भेद वाले पदार्थ पहले अध्ययन में हैं। दो मेदों वाले दूसरे में । पदार्थों को ठाण या स्थान शब्द से कहा गया है। इसी प्रकार दस भेदों तक के दस अध्ययन हैं। इसके विपयों की सूची नीचे लिखे अनुसार है:
पहला अध्ययन । एक मेद वाले पदार्थ आत्मा,दण्ड, क्रिया, लोक, अलोक, धर्म, अधर्म, बन्ध, मोत, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, वेदना, निर्जरा, प्रत्येक शरीर में जीव, भवधारणी विक्रिया, मनोयोग, वचनयोग, काययोग, उत्पाद, व्यय, मृत आत्मा का शरीर, गति, आगति, च्यवन, उपपात, तर्क, संज्ञा, बुद्धि, (आलोचन), विज्ञ, वेदना, छेदना, मेदना, चरमशरीरियों की मृत्यु, संशुद्धि तथा दुख, अधर्मप्रतिमा, धर्मप्रतिमा, देव, असुर और मनुष्यों का मन, उत्थान, कर्म, वल, वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, समय, प्रदेश, परमाणु, सिद्धि, सिद्ध, निर्वाण, निवृत्ति, शब्द, रूप, गन्ध, रस, स्पर्श, सुशब्द, दुःशब्द, सुरूप, कुरूप, दीर्घ, हस्व, वृत्त (गोल), न्यस्त्र, (त्रिकोण). चतुरस्र (चतुकोण), पृथुल (मोटा), परिमंडल, कृष्ण, नील, लोहित (लाल), हारिद्र (पीला), शुक्ल, सुगन्ध, दुर्गन्ध, तिक्त (तीता), कडा, कपायला, आम्ल (खट्टा), मीठा यावत् कठोर, रूक्ष । प्राणातिपात