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________________ ३०७ Cataloguc of Sanskrit, Prakrit, Apabhranısa & Hindi Manuscripts (Puja-Patha-Vidhāna ) Opening : २०१२. वर्द्धमान-पूजा श्रीमतयोर हर भवपीर भरं सुख सीर अनाकुल ताई। फेहरि अफ बरी फरि दक नये शिव पफज मोलि सुआई ।। मैं तुमको इत पापत हौ प्रभु भक्त समेत हिये हरिपाई। हे करुना धन धारक देव इहाँ अव तिष्ठहु शीघ्रहि आई । श्री सनमति के जुगल पद जो पूजे धरि प्रीत । वृदावन सो चतुर नर लहे मुक्त नवनीत ।। इति श्री वीर वर्तमान पूजा समाप्तम् । Closing : Colophon: २०१३. वर्तमानचौवीसी-पाठ Opening : वंदो पांचो परमगुरु मुरगुरवदत जाम । विधन हरन मगल करमपूजत परम प्रकाश ।। Closing रिषभ देव को नादि अंत श्री वर्धमान जिनवर सुखकार । तिनको चरन कमल को पूजे जो प्रानी गुनमाल उचार । ताके पुत्र मित्र धन जीवन सुख समाज गुन मिले अपार । सुरपद भोग भोगि चक्री हवे अनुक्रम लहै मोक्ष पदसार । Colophon : इति श्री वर्तमान चोवीस तीर्थकर जिन पूजापाठ वृदावन कृत सम्पूर्णम् । ज्येष्ठ मासे शुक्लपक्षे तिथी १५, भृगुवासरे सवत् १९५२ । विशेप-इसके नीचे कवि नाम वर्णन भी दिया गया है। २०१४. वर्तमानचौवीसी पूजा Opening । श्री आदीश्वर आदि जिन अतमाम महावीर । वन्दी मन वच काय सौ मेटो भव भय भीर ॥१॥
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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