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Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramla & Hindi Manuscripts
( Puja-Patha-Vidhana)
१६३२ समवशरण
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आज गई थी समोसरण मैं कहाँ कहुँ हीत हेत री। बार बार दरवाजे चहुदिस परखा कोट समेत री ॥१॥ परम सरस्वती सिव • • गहे निज ग्याने तीन जु वरी। कहे दीप याते तुम सेवा भजै भावकर उरसो री॥ अनुपलब्ध।
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१९३३. समवशरन
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धूल साल देखे मूल साल नरहत, डर मानषल देखे जो ईमान महामानी को। वेदी के विलोक आप वेदी पर वेदी होत, निरवेद पद पावै याते है कहानी को। धरि लई सुध अनुभूत को ज्ञानलोग भोगी लयो। अनुभाग वध स्थिति भागते, भागगगदारिद गयला ।। इति श्री मोक्षमार्ग सम्पूर्णम् । सवत् १७७४ वर्षे पोसमासे शुक्लपक्षे सप्तमी शनिवासरे लिखित्तम् । शुभमस्तु ।
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१९३४ सम्मेदाचल-पूजा
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मुक्तिकान्ता प्रदातारं स्थानेषु स्थानमुत्तमम् । मुक्ति तीर्थ कर प्राप्य वदे शैलेन्द्रसिद्धिदम् ।।१।। वज्रीचद्रप्रतेंद्रपेद्रतरणी · प्राप्नुवन्ति शिवम् ॥१३॥ इति सम्मेदाचल पूजनविधान समाप्तम् । सवत् १८२६ भाद्र बदि १२ भौम दिने लिखि ।