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________________ २२८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library Jain Siddhant Bhavan, Arrah Opening Closing : Colophon : Colophon : Opening Cosing १७४७. देवपूजा देखे, क्र० १७४६ । देखे, क्र० १७४६ । Opening : C'osing : की सकन मान त्रिन सकते सरधा धरो । द्यानत सरधावान अजर अमर सुख भोगवं । इति श्री देवपूजा सम्पूर्णम् । Colophon यतीद्रसामान्यतपोधराणा इति देवपूजा सम्पूर्णम् । १७४८ देवपूजा 1 भगवान जितेन्द्र | देखे, जै० सि० भ० ग्र० I, क्र० ८३७ । १७४९. देवपूजा जय 1३। जयवत प्रवर्त्तो ||३|| नमोस्तु | ३ | नमस्कार होऊ |३| णमो अरहताण । अरहतनि के निमित्त नमस्कार होऊ । णमो सिद्धाण | सिद्धन के निमित्त नमस्कार होऊ । णमो आयरिआण। आचाणि के अर्थ नमस्कार होऊ । " 1 मेरे मैं प्रभात समय मध्यान्ह समय सध्या समये विषे पूजा करए । सकल कर्म्म का छय निमित्त भावपूजा वदना स्तुत अन भक्त प्रतमा भक्ति पंचमहागुर भक्ति करिये कायोत्सर्ग कवि उवे पाप है तिनकू त्यागिए । इति श्री देवपूजा अर्थ मयुक्त सम्पूर्णम् ।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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