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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library Jain Siddhant Bhavan, Arrah
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Closing :
Colophon :
Colophon :
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Cosing
१७४७. देवपूजा
देखे, क्र० १७४६ ।
देखे, क्र० १७४६ ।
Opening : C'osing : की सकन मान त्रिन सकते सरधा धरो ।
द्यानत सरधावान अजर अमर सुख भोगवं ।
इति श्री देवपूजा सम्पूर्णम् ।
Colophon
यतीद्रसामान्यतपोधराणा
इति देवपूजा सम्पूर्णम् ।
१७४८ देवपूजा
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भगवान जितेन्द्र |
देखे, जै० सि० भ० ग्र० I, क्र० ८३७ ।
१७४९. देवपूजा
जय 1३। जयवत प्रवर्त्तो ||३|| नमोस्तु | ३ | नमस्कार होऊ |३| णमो अरहताण । अरहतनि के निमित्त नमस्कार होऊ । णमो सिद्धाण | सिद्धन के निमित्त नमस्कार होऊ । णमो आयरिआण। आचाणि के अर्थ नमस्कार होऊ । "
1
मेरे मैं प्रभात समय मध्यान्ह समय सध्या समये विषे पूजा करए । सकल कर्म्म का छय निमित्त भावपूजा वदना स्तुत अन भक्त प्रतमा भक्ति पंचमहागुर भक्ति करिये कायोत्सर्ग कवि उवे
पाप है तिनकू त्यागिए ।
इति श्री देवपूजा अर्थ मयुक्त सम्पूर्णम् ।