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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah.
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अतुल सुखनिधान सर्व कल्याणवीजम्, जननजलधिपोत भव्यसत्वं कपात्रम् ।
दुरिततरुकुठार पुण्यतीर्थं प्रधानम् ।
पिवतु जितुविपक्ष दर्शनाख्य सुधाशु ||
दर्शनपूजा |
१७३५. दर्शनप ूजा
देखे. ऋ० १७३४ ।
देखे, क्र० १७३४ ।
इति पडिताचार्य श्री नरेन्द्रसेनविरचिते दर्शनपूजा समाप्ता ।
१७३६. दसलाक्षणी-पूजा
उत्तमक्षान्तिमाद्यन्त ब्रह्मचर्य सुलक्षणम् । स्थापयेत् दशधाधर्ममुतम जिनभाषितम् ॥
करे कर्म की निर्जरा भव पीजरा विनास |
अजर अमर पद को लहै द्यानत सुख की रास ॥ इति श्री दसलाक्षनी जी की भाषा जयमाल सम्पूर्णम् ।
१७३७. दशलाक्षणी - पजा
देखे, ऋ० १७३६ ।
देखे, ऋ० १७३६।
इति श्री दसलाक्षणी पूजा जी समाप्तम् ।
१७३८. दशलाक्षणी-पूजा
देखें, फ० १७३६ |