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Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts ( Puja Patha-Vidhāna )
१७१७. चतुर्विंशतिजिन जयमाला
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Opening: देखें, क्र० १७१३ |
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वदितानमर
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• पूरा इव ॥१॥ लक्ष्मीवधूनाम् ॥
२१६
गुणविद्धा
इति श्री चतुर्विपति जिन जयमाला समाप्ता । सवत् १६३२ वर्षे चैत्र शुदि ११ शनी ।
१७१८. चोवीस तीर्थ कर-पूजा
ए नाम जिनेश्वर दुरितक्षयकरि जो भविजनक वि धरई । हुये दिव्य अमरेश्वर पुहिमे नरेश्वर रामचद्र शिवतिय वरई ||२५|| इति श्री चोवीसतीर्थंकर पूजा समाप्तम् ।
१७१६. चौबीस तीर्थकर - पूजा
श्री वृपमादि विरातिमा चौवीसह जिनराय । आह्वानन ठार्ड करू, तिन घेर गुणगाय ॥१॥
जे जिव कुट्टक पट्ट तजि सुभभावन जिन पूज्य रच्चावे |
ते जिव ' धरणेन्द्र खगेन्द्र नरेन्द्र सुरेन्द्र तणो पद पावै ॥
समाप्तः ।
१७२०. चौबीस तीर्थकर - पूजा
द्धि बुद्धि दायक
पदकज ||
वृषभ आदि चौवीस जिनेश्वर ध्यावही || अध करें गुणगाय सुर बजावही ||