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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्यावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah.
१७०१. बीस-विद्यमान पूजा
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देखें, क० १६६६ । देखें, ऋ० १६१६ ।
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इति श्री वीसविरहमान पूना समाप्तम् ।
१७०२. बीस-तीर्थकर-जकड़ी
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Closing ।
श्री मंदजिण वदस्पा जग सारही, पुंडरीकजिणराय । जबूदीप विदेह में जगनार हो मेरि पूरवदिसिभाय ।। सातमा जिन समयगामी मोरिव बेसु दिगवरा । भावना भावं हरष सेती होइ मुक्ति स्वयवरा ॥ इति वीस विरहमान की जखडी सम्पूर्णम् ।
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१७०३. बीस-विरहमान आरती
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प्रथम श्रीमदर स्वामी जुगमधर त्रिभुवण धारिए ॥१॥ इम बीस जिनवर सघ सुखकर सेव तुम्हारी कीजिये । करि जोर सेवक वीन प्रभु मणवछित फल दीजिये । इति वीस विरहमान जी की आरती समाप्तम् ।
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१७०४. बीसतीर्थ कर जयमाला
Opening | Closing .
देखे, ऋ० १७०३ । प्रभुजी आनद सदेस घ्यावो शिव सुख पाइये । एवीस जिने सुर सग जिनकी सेव नित प्रति कीजिये ॥१॥ करि जोर शती करें विनती मुक्तिफल पाइरे ॥ .