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________________ २१४ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्यावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah. १७०१. बीस-विद्यमान पूजा Opening | Closing | देखें, क० १६६६ । देखें, ऋ० १६१६ । Colophone इति श्री वीसविरहमान पूना समाप्तम् । १७०२. बीस-तीर्थकर-जकड़ी Opening i Closing । श्री मंदजिण वदस्पा जग सारही, पुंडरीकजिणराय । जबूदीप विदेह में जगनार हो मेरि पूरवदिसिभाय ।। सातमा जिन समयगामी मोरिव बेसु दिगवरा । भावना भावं हरष सेती होइ मुक्ति स्वयवरा ॥ इति वीस विरहमान की जखडी सम्पूर्णम् । Colophon| १७०३. बीस-विरहमान आरती Opening । Closing | प्रथम श्रीमदर स्वामी जुगमधर त्रिभुवण धारिए ॥१॥ इम बीस जिनवर सघ सुखकर सेव तुम्हारी कीजिये । करि जोर सेवक वीन प्रभु मणवछित फल दीजिये । इति वीस विरहमान जी की आरती समाप्तम् । Colophon: १७०४. बीसतीर्थ कर जयमाला Opening | Closing . देखे, ऋ० १७०३ । प्रभुजी आनद सदेस घ्यावो शिव सुख पाइये । एवीस जिने सुर सग जिनकी सेव नित प्रति कीजिये ॥१॥ करि जोर शती करें विनती मुक्तिफल पाइरे ॥ .
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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