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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar lain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan Allah
१६८१. अनन्तजिन-पूजा
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क्षेत्रपालाय यज्ञस्मिन्न ...... विघ्नविनाशनम् ॥ भगतन की प्रनिपात कर मवजीवन की काज सरया । नरनारी पूजित क्षेत्रपाल मदा मनवाछित आस भरया ।। इति कवित।
Colophon ।
१६८२ अनन्तपूजा विधि
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एकादशी के दिन पूजन कर व्रत थापन कर तथा आचमन कर तथा द्वादशी के दिन ऐसे ही करें । जीव समासा ।१४॥ अजीव ॥१४॥ गुणस्थान ॥१४॥ मार्ग ॥१४॥ भूत ॥१४॥ रज्जू ॥१४॥ पूर्व ॥१४॥ प्रकीर्णक ॥१४॥ मल ॥१४॥ अथ ॥१४॥ कुलकर ॥१४॥ नदी ॥१४॥ प्रकृत ॥१४॥ रत्न ॥१४॥ चतुर्थदश पदार्थ चितन व्यौरा । इति अनतपूजन विधि ।
देखे, ज. सि० भ० न० I, ऋ० ८०४ ।
Colophon!
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Closing . Colophon: विशेष
१६८३. अनंत पूजा विधि भाद्रपद शुद्ध त्रयोदशी से रात्रि अनतव्रतद्ध'इजे, मायास्नान करावै, शुभ्रवस्त्रनेसाव · अष्टदलकमलकरावे। ॐ ह्री श्री यसमस्मैददत्तानतफल · नित्य घेयाचे मत्र । इति अनतपूजनविधि सम्पूर्णम् । ५१।२३ मे यज्ञोपवीत मत्र हैं, जो इसीका अग है। १६८४. अरिहत-दक्षिणी गगा सिन्ध के निर्मल नीरा स्वर्णभृगार परविहीरा । जन्म मृत्यु जराकृत दूर ·
॥
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