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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
तत्प्राप्नोति पर पद स्मतिमानानदमुद्राकित. ॥ इति चमत्कार आदिनाथ स्वामी पूजा सम्पूर्णम् ।
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१६७५ आदिनाथ-पूजा
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सुप मदुपमतिथि मेटि कम प्रभु थापहि, नृप पद तजि वैराग्य
___ भये प्रभु आपही। ऐसो आदि जिनेश आदि तीर्थ करा, आह्वाहन विधि करु विविध नमके परा॥
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यह निज सार अपार जो भविजन कठधरिई । तेनिजर मरणावलि नासि भवावलि रामचद्र सिव तियपाई ।। इति श्री आदिनाथ जी की पूजा समाप्तम् ।
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१६७६. आदित्यवार-पूजा
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इक्ष्वाकुबमकुल मडणअश्वसेनो तहल्लम, प्रतिवताजिनवामदेवी। तसा जिन विमलभूति सुरेन्द्रवद्य त्रैलोक्यनाथ जिनपार्श्वपद
नमामि ॥१॥
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इति रवि व्रत पूजा सुरपद पूजा जे करते नव वर्ष सही । मनवचक्रमधावहि सो सुरपद पावही पार्श्वनाथ 'फल देतसही ॥
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इति रविव्रत पूजा समाप्तम् ।
१६७७. आदित्यवार-उद्यापन
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श्री नाय' प्रगमामि नित्य, सुरसुरै पूजितपीठवद्यम् । रविव्रतोद्यायनक प्रवक्ष्ये भव्याय नून महतादरेण ॥१॥