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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumai Jain Oriental Library. Jain Siddhant Bhavan, Arrah
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१६३२. स्तुति
हरु प्रभात सुऐ नित उठत है, दर्शन प्रभु चरनन चित चहत है। वारवकि भई हार रहेप के चाव दर्शन प्रचिभूत मे घरे ||१||
यह भजन भये सपूर्ण सीता के वनवास की ।
हरि कही घरी प्रीत प्रभुचरन ए चित लाई के
इति श्रावण शुक्ल स० १६६५ शनिवार हरीदास ने आरा मे लिखे है ।
१६३३. सुप्रभात - स्तोत्र
श्री नाभिनदन जिनो जितसभवेस देवोभिनदन जिनो सुमति। जिनेन्द्र | पद्मप्रभो प्रणतदेव - सुपार्श्वनाथ चद्रप्रभोस्तु सतत मम सुप्रभातम्
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श्री पार्श्वनाथ परमार्थ विदाम्वरेण
इति सुप्रभातस्तोत्रम् ।
१६३४. सूर्यसहस्रनाम
तुहिण किरण विष पोसयत्यसुमाली, जयति कमललक्ष्मी भाषयत्य सुमाली । रजतविरद भीतिमोदयन् कोकवृ दम्, मुखरनरनागे सर्वदा वदनीये ॥ तेजोनिधिवृहतेहा वृहत्कीत्ति वृहस्पति । अहिमान् श्रीमान् श्री सूर्यदेव नमोस्तुते ॥ इति श्री सूर्यसहस्रनाम सम्पूर्णम् ।
कैवल्य वस्तुविद जिन सुप्रभातम् ||४||
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