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________________ १६४ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumai Jain Oriental Library. Jain Siddhant Bhavan, Arrah Opening : Closing! Colophon Opening Closing Colophon. Opening. Closing : Colophon : १६३२. स्तुति हरु प्रभात सुऐ नित उठत है, दर्शन प्रभु चरनन चित चहत है। वारवकि भई हार रहेप के चाव दर्शन प्रचिभूत मे घरे ||१|| यह भजन भये सपूर्ण सीता के वनवास की । हरि कही घरी प्रीत प्रभुचरन ए चित लाई के इति श्रावण शुक्ल स० १६६५ शनिवार हरीदास ने आरा मे लिखे है । १६३३. सुप्रभात - स्तोत्र श्री नाभिनदन जिनो जितसभवेस देवोभिनदन जिनो सुमति। जिनेन्द्र | पद्मप्रभो प्रणतदेव - सुपार्श्वनाथ चद्रप्रभोस्तु सतत मम सुप्रभातम् 11911 श्री पार्श्वनाथ परमार्थ विदाम्वरेण इति सुप्रभातस्तोत्रम् । १६३४. सूर्यसहस्रनाम तुहिण किरण विष पोसयत्यसुमाली, जयति कमललक्ष्मी भाषयत्य सुमाली । रजतविरद भीतिमोदयन् कोकवृ दम्, मुखरनरनागे सर्वदा वदनीये ॥ तेजोनिधिवृहतेहा वृहत्कीत्ति वृहस्पति । अहिमान् श्रीमान् श्री सूर्यदेव नमोस्तुते ॥ इति श्री सूर्यसहस्रनाम सम्पूर्णम् । कैवल्य वस्तुविद जिन सुप्रभातम् ||४|| 199
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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