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________________ १५० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्यावली Shri Devakumar Jaii Oriental Library, Jain Sidhhant Bhavan, Arrah १४७७. ज्वालामालिनी-स्तोत्र Opening : Closing । देखें, ऋ० १४७२ । ... तस्याभरण पीतवर्ण खङ्गत्रिशुलपाससरामनायुध उत्तमासनेन स्थापित तस्याने जाप्य रक्तपीतउज्वलफलानि मध्यरात्रे - • । अनुपलब्ध । Colophoni १४७८. ज्वालामालिनी Opening i Closing : स्नेहाच्छरण प्रयाति भगवन् पादद्वय ते प्रजा, हेतुस्तत्र विचित्रदु.खनिचय ससारघोरार्णव । छायानुरागं रवि ॥१॥ छेदय छैदय भेदय भेदय डरू डरू छरु छरू हरू हरू स्फुट स्फुट घे घे . . - .. ज्वालामालिन्या ज्ञापयते स्तोत्र । इति ज्वालामालिनी स्तोत्र सम्पूर्णम् । इसमे शान्त्याष्टक भी गमित है । Colophon विशेष १४७६. कल्याणमदिर-स्तोत्र Opening । Closing . कल्याणमदिरमुदारमवद्यभैदि, भीतामयप्रदमनिदितमडिघ्रपद्मम् । ससारसागरनिमज्जदशेषजन्तु पोतायमानमभिनम्य जिनेश्वरस्य ।। जननयनकुमुद्रचद्र प्रभासुरा, स्वर्गसपदो भुक्त्वा । __ ते विगलितमलनिचया अचिरात्मोक्ष प्रपद्यन्ते ।। इति श्री कल्याणमदिर संस्कृत समाप्तम् । देखे जै० मि० भ० ग्र० I, ६५२ ॥ Colophon:
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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