________________
१३७ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabbramsa & H131 Manuscripts
(Stotra)
१४३५. चौबीस-जिन-आरती
Opening |
Closing ।
रिपम आदि चौगीम जिन लक्षन लेह विचार । जो कछु सुने सु कहत हूँ, भव्य जन लेहु मुधार । लक्षन जिनवर के कहे भव्यजन लेहु सुधार । भूला चूका फिर घरौ भंग कहै विचार ।। इति श्री चौवीस जिन लक्षन आरती ।
Clolophon:
१४३६. चौवीस-जिन-आरती
Opening
Closing
अतिपरमपवित्र जनितमुचित्र वरविचित्रमगनकरणम् । प्रणमामि जिनेन्द्र प्रणतशतेन्द्र भवममुद्रतारणतरणम् ॥१॥ परमजितेखरा मुवि परमेश्वरा कालत्रयकरयाणकरा । मघप्रभवत चरणभजत विस्तरन्तु मगलमधिरा ।। इति चौवीन जिन चिह्न आरती समाप्तम् ।
Colophon :
१४३७. चौवीस-दडक-विनती
Opening ।
Closing •
वदो वीर सुधीर को महावीर गभीर । वर्द्धमान सनमत नमो, महादेव अतिधीर ॥१॥ अताकरन जो सुद्ध होय जिन घरमी अभिराम । भाषा कारन करन को, भाषो दौलतराम ॥५६॥ इति श्री चौबीस दडक विनती सपूर्णम् ।
Colophon ,
१४३८. दर्शन-ज्ञान-चारित्र-आरती
Opening :
सम्यक दरसन ग्यान व्रत, इन बिन मुकत ना होय । सधपग मरु मातमी जुड़े जल दरलेग्य ।।