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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
Colophon।
इति आचार्य भक्ति।
देखे, जि० र० को०, पृ. २५ । ०सि० भ० ग्र० 1, क्र० ६०१ ।
१३६२. आदिनाथ स्तुति
Opering •
जाके चरनारविंद पूजत सुरिंद इन्द्र देवन के वृदचद
___ सोभाअतिभारी हैं। कहत विनोदीलाल मन वच तिहू काल ऐसे नाभिनदन को
दमा हमारी है ॥१॥ तुम तो जिनददेव जगते ........ .. ....... ... त्रिभुवननाथ गति मेरि यो बनाई है। इति श्री आदिनाथ स्तुति समाप्तम् ।
Closing •
Colophon •
१३६३ आदिनाथ आरती
Opening .
Closing :
आदिनाथ तुम जगताधार, भवसागर उतारन पार । मै तुम चग्न क्मल को दाम, आदि नाथ मेरी पूरी आस ।।१।। तुम अनत गुन है प्रभु कम पाऊ पार । थोडी कर मानौ धरी भैगे है वखान ॥७॥ इति श्री आदिजिन आरती समाप्तम् ।
Colophon :
१३६४ आदिनाथस्तोत्र
Opening . Closing :
आदिनाथ जगनाथ पार्श्व वदे गुणाकरम् ॥१॥ तद्गृहे कोटिकल्याणश्रीविलसति लालया। क्षुद्रोपद्रवमतादि नश्पते व्याधिवेदना ॥७॥