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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
Colophon:
इति राजुल पचीसी सपूरन ।
१२७१. राजुल-पचीसी
Opening •
Closing :
सुनु भविजन हो प्रथम ही प्रथम जिनेन्द्र चरन चित ल्याइए । सुनु भविजन हो सारद गुरु हि मनाइ जादो राय गाईए ॥१॥ गावै विनोदीलाल हरषित भविक जनन सुनावई ।
और गाव नर नारी सोउ अमर पद पावई ।।२५।। इति राजुल पचीसी सपूर्णम् ।
Colophon
१२७२. राजुलपचीसी
Opening __ देखें, ऋ० १२६६ ।
Closing देखे, ऋ० १२६६ । Colophon: इति श्री राजुल पचीसी समाप्तम् ।
१२७३ राजुलपचीसी
Opening ! Closing . Colophon:
वदी वे प्रथमही ... • राजमति जस गाई सो जीवे ।। अस्पष्ट। . . इति सपूर्णम् । ।
१२७४. रिस्ता
Opening !
कीऐ श्रीनायक तीनी हिए व्यापत है ।। तिहारे दर्शन ......... पाप नासत है ॥ गहे जिननाथ को - जागे है। इति रेषता समाप्तः ।
Closing : Colophon