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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
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अट्ठातीस योगन एकमोअठ्ठावीस धनुष सष्ठ्योत्तर अगुन्न इतनी जबूद्वीपको परिधि । नहीं है ।
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११७१. पदर्शन
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शिवमत बोध सुवेदमत नैयायिक मत पक्ष । भीमासकमत जैनमत षट् दरसन पर लक्ष ॥१॥ रायपवानी : पुनीनचावन १० लोचन वडवा ११ घरघरमी १२ कवित १३ राधा १४ वृषमन बावन १५ पेषनेवाई १६ । अनुपलब्ध।
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११७२. षट्पाहुड
काउण णमोयार जिगरवसहस्सवमाणएस । दसणमगवा बोच्छामि जहा कम्म समाशेण ।। अरहती सुहाना - ... पुणा केरिय अण ॥४८||
Closing :
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इति श्री कुदकुंदाचार्य विरचिन जीनप्रामृतं समाप्रम् । संवत् १७६५ वर्मे वंशाम्बमामे शुक्लपक्षे ति द्वादमी १२ मानगर श्रीरम।
११७३ षट्पाहुड
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देखें, ऋ० ११७२ । एव जिण पण्णत्त मोक्खस्स य पाहुड सुभतीए । जो पढइ सुणइ भावइ सो पावइ सासय सुख्ख ॥ इति श्री कुन्दकुदाचार्यविरचितं मोक्ष-पाहुड षष्ठ समाप्तम् ।
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