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________________ ५० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakuma Jain Oriental library, Jain Sidhhant Bhavan, Arrah. Closing : Colophon : Opening: Closing : Colophone : Opening Closing Colophon _Closing वस्त्र का त्याग 191 दतवन का त्याग । खडे होय अहार ले 191 लघु भोजन एक वेर ले । एव सप्त ए अठाईस गुन साधु महाराज जी का कहुया । इति श्री समुच्चय पंचपरमेण्टी की चर्चा स्वम्प सपूर्णम् । १ ११५४. परमात्मप्रकाश चिदान देकरूपाय जिनाय परमात्मने । परमात्मप्रकाशाय नित्य सिद्धात्मने नम परमाण भादिव्वकाउ, भति मुनिवराण मुक्रवदो दिव्व जोउ । विसयसुहरयाण दुल्लहो जोहु लोए । tra feat daलो कोप्टिव हो ||३४६ ॥ इति श्री योगीन्द्रदेवविरचिन परमात्मप्रकाश, समाप्त । देखें, क्र० ११५४ । देखे, ऋ० ११५४ । इति परमात्मप्रकाश समाप्त । ग्रन्या ४५१ श्लोक अनुष्टुप श्री । श्रीरस्तु | लेखकगठकयों. शुभ भूयात् । ११५६. परीक्षामुख वचनिका Opening . श्रीमत् वीर जिनेस रवि, तम अज्ञान नसाय । शिवपथ वरतायो जगति, वदो मै तसु पाय ॥१॥ ११५५. परमात्मप्रकाश कोटि जीव तुल्य की की टीका करे हैं सो जैसे गणना मे गणिये तोउ हमें इस ग्रंथ नदी का जल नवीन घट विषेकिछुवा
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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