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________________ ३० श्री जैन सिद्धान्त भदन ग्रन्थावली Shii Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Closing : __... - "तेजकाय वायुकाय विषेभी उपजे है ऐसे चौवीस देडकनि का कथन लिख्या सो त्रिलोकसार " आदि ग्रन्थनि ते सोधि करि लेवे । अनुपलब्ध । Colopbon. १०९३. चौबीसठाणा Opening : Closing . गइइदिय च काए जोए वैए कपायणागैय । सयमदसणलेस्सा भब्विया समत्तसण्णिाभाहारे ।।१।। अपकाय । वायकाय । तेजकाय । पृध्वीकाय । वनस्पती। वैइन्द्री । तेइन्द्री । चौइन्द्री । जलचर । पंक्षी । चौपदा । उरपद । देव । नारकी । मनुष्य । Colophon - दोहा इति श्री चौवीस ठाना की चरचा सम्पूर्णम् । मिति पौष कृष्ण बुधवार । सम्वत् १८७४ । करि कटि ग्रीवा नयनदुख तनदुख बहुत सुजान । लिख्यो जाति अति कवित त सब जानत आसान ।। शुभ भवतु । १०६४ चर्चा-संग्रह Opering धर्माधुरंधर आदि जिन, आदि धर्म करतार । जमू देवघरण ते सर्व विधि मंगलसार ॥१॥ Closing : एक-एकपाखंडी के उपरि एक एक अप्छरा नृत्य करें ऐसे सब मिलि संताईस कोड होय छ ऐसा जानना । Colophon! इति चर्चासंग्रह समाप्तम् । शुभं भवतु । देखें, जै० सि. भ. प. I, ऋ० १९५॥
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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