SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Davakutaar Jain Oriental Library Jain Siddhant Bhavan, Arra.h साधुनमौं निरग्रन्थ मुनी -गुरु, परम दयाल महा सुखदाई, नि पच गुरु एत मै सुनमू इनके सुमरै भवताप नसाई ॥१॥ Closing , दान कथा पूरण भई, पढ सुने सब कोय । दुख दरिद्र नासै सबै, तुरत महासुख होय ॥७६।। इति श्रीदानकथा भारामल्लकृत सपूर्णम् । देखे--(१) जै० सि० भ० न० , ० २६ । Colophon: १०१७. दशलाक्षणी कथा Opening Closing | धर्म जु दश लाछन कहै तिनको करू वखान । जो जिय निहजै चित्त धर ताको होय कल्यान ॥१॥ इह विध व्रत नर जो कर, पावं शिव पद थान । बूढे दुख ससार के, भरी कहै बखान । इति श्री दसलाक्षणी कथा समाप्तम् । Colophon! १०१८. दशलाक्षणी कथा .Opening | Closing | ऋषभनाथ प्रणमू सदा गुरु गनधर के पाय । तीन भवन विख्यात है सब प्रानी सुखदाय ॥१॥ सत्रह से इक्यावनवा भादव मास सुखसार । शुक्ल तिथ त्रययोदशी सुभ रविवार विचार ||१|| भूला चूका होय जो लीजो सुकवि सुधार । मोह दोस दीजे नही करी जु भव हितकार ||२|| इति श्री दसलाक्षणी कथा समाप्तम् । देखें-(१) ० सि० भ० ग्र०, पृ. २८ । Colophon: १०१६. दशलाक्षणी-कथा Opening । प्रथम नमन जिनवरनं करू, सादर गणधर पद अनुसरण • दशलाक्षिण व्रतकथा विचार, भाष जिन आगम अनुसार।१॥
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy