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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
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(४) रा० सू० III, पृ० ५७ । ( ५ ) अ० सू० पृ० १९३ |
१६. प्रतिष्ठा विधान
नमो सदा भूयदरिघातार्धजोऽहंते । रहस्यभावतो लोकत्रयपूजाभावत ॥
नम्र ेन्द्रनन्दिमुकुटोरुस र प्रतिष्ठाप्राग्भाविकृत्यमजितजिन दिव्यमूर्ते । तोर्भुव शुभतमेरभितो विशोध्य पात्राणि तत्र सलिलाद्यपि
शोधयित्वा ॥ स्वस्तिश्री सुख सिद्धिऋद्धिविभव प्रख्यातय. पूज्यता, कीर्ति क्षेममगण्य पुण्यमहिमा दीर्घायुरारोग्यवत् । सौभाग्य धनधान्यमम्वदमय भद्र शुभ मंगलम्, भ्यान्द्रव्यजनस्य भास्वति जिनांधीशे प्रतिष्ठापिते ॥ विशेष - प्रशस्ति संग्रह ( श्री जैन सिद्धान्त भवन द्वारा प्रकासित ) पृ० १०४ में सम्पादक भुजबलीशास्त्री ने ग्रन्थ के बारे मे लिखा है - यह हस्तिमल्ल प्रतिष्ठा विधान मूडविद्री से प्रतिलिपि कराकर आया है। इसमे कर्ताका परिचय नही मिलता । परन्तु और अन्त में हस्तिमल्ल लिखा मिलता अवश्य है । से इस प्रतिष्ठा ग्रन्थ का कर्त्ता हस्तिमल्ल माना गया है। "वीराचार्य सुपूज्यपाद जिनसेनाचार्य सभाषितो, यः पूर्वं गुणभद्रसूरिवसुनन्दन्द्रादिनन्द्य ज्जित |
कही भी ग्रन्थ
ग्रन्थ के आदि
इसी
चार हस्तिमल्लकथितो यमयेकसन्धीरितस्तेभ्यस्त्वाहृतसारमार्यरचित स्याज्जैनपूजाक्रम. । इस श्लोक से यह बात सिद्ध हो जाती है कि हस्तिमल्ल ने भी एक प्रतिष्ठा पाठ रचा है ।
९१७. प्रतिष्ठा विधि
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प्रणम्य स्वस्ति ऋद्धि श्री ज्ञानकाति प्रदायिने । महावीरस्य विवस्य प्रवेश विधि लिस्यते ॥ इन्द्रावत्येश्वतर २ तिष्ठ २ स्वाहा ।