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२६३ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apadhramsha & Hindi 'Manuscripts
( Puja-Patha-Vidhāna )
Closing I Colophon :
... ". वितरनिल्पाय पटुपटह वज्जिय कहत .... .. ।
Missing ८७६. नन्दीश्वर विधान
ग
. Opening I. नदीश्वर पूरव दिशा, तेरह श्री जिनगेह ।
""आह्वानन सिनको करौं, मन वच तनधरिनेह ॥' Closing ... मध्यलोक जिनभवन, अकीतिम ताको पाठ पढे मन लाइ ।
... - जाके पुष तनी अति महिमा वरनन को कति सकै बनाई ।। . . . , , , ... साके पुत्र पौष अरू. सपति वाढ अधिक सरस सुखदाइ ।
" इह भव पशं परभव सुखदाई, सुरनर पदलहिं शिवपुर जाई ।। Colophon, इति श्री नंदीश्वर दीप की उत्तर दिशि सम्बन्धी एक अजन
गिरि चार दधिमुख गिरि आठ रतिझर गिरि पर त्रयोदश सिद्धकूट विव विराजमान' तिनकी पूजा सम्पूर्ण '
८० नन्दीश्वर विधान
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Closing :
Colopohn:
:
अष्टमदीप नदीश्वर बहु विस्तार है। - ताके च (ह) दिसि बावन गिरि मनिधारि है।
सामान ( सामान्य ) भाव असे जानि लेना और विशेष भाव अन्य शास्त्र से जानि लेना। इस मडल की नकल शुभा-आकारकारणी।
इति समुच्चय जयमाल,श्री नदीश्वर पूजा चार दिस सबधी वयपचासजिनालय टेक चद कृत सपूर्णम् ।। . . . पोष सुदी आठ विमल वोरभृगौ पहिचान ।
। सवत्सर ('उन्नीस) से अधिक इक्यावन मान ॥ संवत् १९५१ लिखत ५० चौधे चतुरभुज पदैरी वारन की। (वालेकी)
९९१. नवग्रह अरिष्ट निवारणक पूजा
Opening!
अर्कश्चद्रकुज सौम्यगुरुशुक्रशनीश्वर । राहुकेतुग्रहारिष्टनाशनं जिनपूजमात् ॥१॥ -