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________________ *२८० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Artob Closing Colophon Opening : Closing : Colophon Opening I Closing Colophon Opening Closing t Colophon Opening after ब्रह्मचर्यं धर्मदस सार हैं, चहुगति दु:ख तं काढि मुकति करतार है ॥ करें कर्म की निर्जरा, भवपीजरा विनाश । अजर अमर पद कू लहे, द्यानत सुख की राश || इति दशलाक्षणी पूजा सपूर्णम् । ८३३. दसलक्षण पूजा उत्तमादि क्षमाद्यते ब्रह्मचर्य सुलक्षणम् । स्थापयद्दशधा धर्ममुत्तम जिनभाषितम् ॥ कोहानल चक्कर होइ गुरुक्कउ, जाइरिसिंद सिद्धः । जगताइ सुहरू धम्ममहातरू देइ फलाइ सुमिहुइ || इति दशलाक्षणी पूजा आरती सपूर्णम् । देखे - ( १ ) दि० जि० प्र० २०, पृ० १६५ । ८३४. दसलक्षण पूजा देखे - ० ८३३ ॥ देखें - क्र० ८३२ । 1 इति श्री दशलाक्षणी पूजा सम्पूर्णम् । श्री सवत् १९५१ मिती वैशाखकृष्ण परिवा को सितल प्रसादके पुत्र विमलदास ने चढ़ाया । ८३५. दशलक्षण पूजा देखें, क्र० ८३३ | देखें, क्र० ८३२ । इति श्री दशलाक्षणी पूजा जी समाप्तम् । ८३६. दर्शन सामायिक पाठ संग्रह चतुविशति तीर्थङ्करेभ्यो नमः श्रीसरस्वतिभ्यो नमः ... !! विशेष—अनेक पाठो का संग्रह किया गया है।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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