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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Artob
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after ब्रह्मचर्यं धर्मदस सार हैं, चहुगति दु:ख तं काढि मुकति करतार है ॥ करें कर्म की निर्जरा, भवपीजरा विनाश । अजर अमर पद कू लहे, द्यानत सुख की राश || इति दशलाक्षणी पूजा सपूर्णम् ।
८३३. दसलक्षण पूजा
उत्तमादि क्षमाद्यते ब्रह्मचर्य सुलक्षणम् । स्थापयद्दशधा धर्ममुत्तम जिनभाषितम् ॥
कोहानल चक्कर होइ गुरुक्कउ, जाइरिसिंद सिद्धः । जगताइ सुहरू धम्ममहातरू देइ फलाइ सुमिहुइ || इति दशलाक्षणी पूजा आरती सपूर्णम् ।
देखे - ( १ ) दि० जि० प्र० २०, पृ० १६५ ।
८३४. दसलक्षण पूजा
देखे - ० ८३३ ॥
देखें - क्र० ८३२ ।
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इति श्री दशलाक्षणी पूजा सम्पूर्णम् ।
श्री सवत् १९५१ मिती वैशाखकृष्ण परिवा को सितल
प्रसादके पुत्र विमलदास ने चढ़ाया ।
८३५. दशलक्षण पूजा
देखें, क्र० ८३३ |
देखें, क्र० ८३२ ।
इति श्री दशलाक्षणी पूजा जी समाप्तम् ।
८३६. दर्शन सामायिक पाठ संग्रह
चतुविशति तीर्थङ्करेभ्यो नमः श्रीसरस्वतिभ्यो नमः ... !!
विशेष—अनेक पाठो का संग्रह किया गया है।