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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
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. जिणगुणसपत्ति होउ मज्झ । इति योगभक्ति सम्पूर्ण ।
८०१. अभिषेक पाठ
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श्री मन्मन्दिरसुन्दरे ... ... नाभिषेकोत्सवे ।। पुष्प जयकर भगवान के ऊपर चढावने गधोदक कीये
पश्चात् । इति शान्तिधारा समाप्त। भाद्रपदमासे कृष्णपक्षे तिर्थों ४ रविवासरे सवत् १९६५ ।
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८०२. अभिषक समय का पद
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प्रभुवर इन्द्रकलश कर लायो, शैलराज पर सजिसमाज सब जनम समय नहवायो ।
प्रभु केवय प्रमान - .... जनकल्याणक गायो । इति पद पूर्णम् ।
८०३. आकृत्रिभचेत्यालय पूजा
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ॐ ह्रीं असुरकुभारार्चितपकमार्गेषु दक्षिणदिगचतु त्रिसतलक्षाकृत्रिम जिनालय जिनेभ्यो ॥१॥ अस्पप्ट। नही है।
८०४. अनन्तव्रत विधि
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एकादशी के दिन पूरतन कर भगवान की तब व्रत स्थापन है। एक कर तथा आचाम्ल पाणी भात करें तथा द्वादशी को भी असे ही कर . -