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श्री जन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library Jain. Siddhant Bhavan, Arrah
इत्य पुरोत्थ पुरूदेवयत्र सभाव्यमध्ये जिनमर्चयामि ।
सिद्धादिधर्मादि जिनालयात पत्रेषु नामाकित तत्पदेषु ॥ विशेष-प्रशस्ति सग्रह ( श्री जैन सिद्धान्त भवन ) द्वारा प्रकाशित पृ० १४ मे सम्पादक
भुजवली शास्त्री ने ग्रन्थ कर्ता के बारे में लिखा है। इसके कर्ता देवेन्द्रकीर्ति है और इन्होने जिनेन्द्र भगवान के विशेष रूप में अपना, अपने गुरु का एव प्रगुरु का क्रमश:-धर्मचन्द्र, धर्मभूषण, देवेन्द्र कीति इन नामो से उल्लेख किया है। देवेन्द्रकीति के नाम से कई व्यक्ति हुए है, इसलिये नहीं कहा जा सकता कि अमुक देवेन्द्रकीर्ति ही इसके प्रणेता है ।
७५०. सहस्त्रनामस्तोत्र टीका
Opening | ध्यात्वा विद्यानद समन्तभद्र मुनीन्द्रमहन्तम् ।
श्रीमत्सहस्त्रनाम्ना विवरणमावस्मि ससिद्धौ ।। Closing अस्ति स्वस्तिसमस्तसघ तिलक श्रीमूलसपोनघम्,
वृत्त'यत्र मुमुक्षुवर्गशिवद ससेवित साधुभिः ।। विद्यानदिगुरुस्त्विह गुणवद्गच्छे गिर साप्रतम्,
तच्छिष्यश्रुतसागरेण रचिता टीका चिर नदतु ।। Colophon, इत्याचार्य श्री श्रुतसागरविरचिताया जिनसहस्त्रनामटीका
यामतकृल्वतविवरणो नाम दशमोध्याय समाप्त. । इति जिनसहस्त्रनामस्तवन समाप्तम् । सवत् १७७५ वर्षे वैशाख सुदी ५ गुरी श्री मूलसघे भट्टारक श्री विश्वभूषणदेवास्तदेतेवासिनः ब्रह्म श्री विनयसागर तदतेवासिन पडित श्री हरिकृष्ण तदतेवासिन (पजीवनि ) गगारामेन लिखित मेंदग्रामे आदिनाथचैत्यालये लिखितमिद पुस्तकम् । .
७५१. सहस्त्रनाम स्तोत्र
Opening • Closing :
स्वयभुवै नमस्तुभ्यं ......... चित्तवृत्तये ॥१॥ अमोघवाघमोघज्ञो निमलोमोघशासन ।
Colophons
Missing
देखें, Catg. of Skt. & Pkt
Ms., P. 707.