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________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली २५२ Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Colophon Opening: Closing : Colophon! Opening Closing : Colophon Opening Closing Colophon : इति पद्मनदीमुनिविरचितं श्री पार्श्वनाथस्तोत्रटीकासहित सम्पूर्णम् || देखें - (१) दि० जि० ० २० पृ० १४० । (२) जि० २०, को०, पृ० २४७ ॥ ३३६. पार्श्वनाथ स्तोत्र देखें - क्र० ७३५ । त्रध्य य पठेन्नित्य नित्यमाप्नोति सश्रियम् । श्री पार्श्व परमात्मे ससेवध्व भो बुधा सुकृत् ॥ इति श्री पार्श्वनाथस्तोत्र समाप्तम् । ७३७. पार्श्वनाथ स्तोत्र देखें ऋ० ७३५ तर्कव्याकरणे च नाटकच काव्याकुले कौशले, विख्यातो भुवि पद्मनदमुनयः तत्वस्य कोश निधि' । गंभीर यसकाष्टक भणितय सस्तूय सा लभ्यते, श्री पद्मप्रभदेव निर्मितमिद स्तोत्र जगन्मगलम् ॥६॥ इति श्री लक्ष्मीपतिपार्श्वनाथस्तोत्रसमाप्तम् । ७३८. पंचस्तोत्र सटीक 3 देखें, ऋ० ६०७ ॥ दृष्टस्तत्व जिमराजचंद्र विकसद्भू वेन्द्र नेत्रोत्पलें । स्नात त्वन्नुति चद्रिकाभसिभवद्विद्वचकारोत्सवे ॥ मीतवाद्य निदाद्यज क्तमभर शातिमयागम्यते । देवत्वद्गतचेतसंव भवतो भूयात्पुनर्वर्शनम् ||२६|| संवत् १६६७ फाल्गुण शुक्ला १२ रविवासरे लिपिकर्त प० सीताराम शास्त्री |
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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