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षी जैन सिद्धान्त भवन प्रन्थावली Shri Devakum'ır Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrab
७१२. निजात्माष्टक
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णिच्यन्तेलोकचक्काहिव सयणमिया जोजिणिन्दाय सिद्धा। अण्णगन्यन्थसन्था गमगमियमण उन्वज्झा झया। सूरि साहू सव्वे सुद्धणियाद अनुसरण प्रणामोखसम्म । ति तम्हासोऽहज्झायेमिणिञ्चपरमपयगओ णिविषप्पोणियप्पो ।११ रूवे पिंडेपयत्येण कलपरिचये जोयिविदेण णादे।। अत्थे गन्ये ण सत्येण करण किरि या णावरे भगचारे । साणन्दाणन्द हो अणुमह सुसुमवयेणा भावप्रम्बो। सोहझाये मिणिञ्च परमपयगओ णिविपम्पोणियम्पो॥
इति योगीन्द्रदेवविरचित निजात्माष्टक समाप्त शुभ भूयात।
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७१३, निर्वाण कण्ड
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वर्द्धमानमह स्तोध्ये वर्द्धमानमहोदयम् ।
कल्याण पंचभिर्देव मुक्तिलक्ष्मीस्वयवरम् ।।१।। इत्यर्हता शमवत्ता • - निरवद्यसौख्यम् ॥१२॥ __ इति निर्वाणकाड सम्पूर्णम् ।
७१४. निर्वाण काण्ड
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अट्ठावम्मि उसहो - महावीरी ॥१॥
जोयट्ठ इतियाल .. लहइ णिव्वाण ॥२८॥ इति निर्वाण काड समाप्तम् ।
७१५. निर्वाण काण्ड
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वीतराग वदी सदा, भाव सहित मिरनाय । कहूँ का निर्वाण की भाषा विविध बनाय । सवत् सत्रह से तैताल, आश्विन सुदि दशमी सुविशाल ।
भैया वदन कर त्रिकाल जय निर्वाण कांड गुनमाल ॥२२॥ इति निर्वाण काड भाषा समाप्तम् ।
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