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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar, Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
Closing : Colophon:
वाराराशिरसी प्रसूय भवती... ."मन्येमहत्व सस्थित ॥१२॥
इति श्री महालक्ष्मीस्तोत्रसपूर्णम् ।
Opening r Closing 1
७०४. महालक्ष्मी स्तोत्र देखें, क्र० ७०३।
न कस्यापि हि मत्रीय क्थनीय विपश्चिता। यशोधर्मधनप्राप्त्य. सौभाग्य भूतिमिच्छिता ॥ इति श्री महालक्ष्मीस्तोत्रसपूर्णम् ।
Colophon:
Opening :
Closing :
७५, मगलाष्टक
श्री मन्नम्रसुरासुरेन्द्र - " कुर्वन्तु ते मगलम ॥१॥ जीर्ण-शीर्ण ।
७०६. मंगल आरती
Opening :
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मंगल आरती कीजे भोर । विधन हरन सुखकरण किसोर।।।। अरहंतसिद्ध सुरि उवझाय । साधु नाम जपिय सुखदाय ॥ मगलदान शील तपभाव, मगल मुक्तवधू को चाव । द्यानत मगल आठो जाम, मगल महा भक्ति जिन साम॥
इति आरती सम्पूर्णम् ।
Colophon :
७०७. माणि भद्राष्टक"
Opening: अपठनीय । Closing :
धर्मकामा लक्ष्मीस्तुष्टदेवोस्त्यवश्य,
धरणिधरकवे रती वक्तिः सत्यम् ॥ Colophon. इति श्री मणिभद्र यक्ष्यादि राज स्तोत्रमत्रयुत महाप्रभावीक
सम्मत्तम् । विशेष-- अन्त मे दिया गया मत्र अपूर्ण है।