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________________ -२२६ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddh int Bhavan, Arriba ६३७. भैरवपद्मावती कल्प Opening : ॐकरिविष्टिसंयुक्त ध्वज यत्र सनामक लिखित्वा परिवृक्षाणा बद्धमुच्चाटन रिपो० ॥१॥ Closing : यावद्वारिधिभूधरतारागणगगनचद्रदिनपतय' तिप्टतु भुवितावदय भैरवपद्मावती कल्प ॥५६॥ Colophon इत्युभय भाषा कविशेखर श्री मल्लिषेण सूरि विरचिने भैरवपद्मावती कल्प म्माप्ता. ॥ श्रीरस्तुवाचकाना मिति फाल्गुण कृष्ण चतुर्दश्या १४ बुभवासरे श्री नीलकमदास स्व पठनार्थम् सवत् १९५६ ॥ ६३८ भैरवपद्मावती कल्प Opening श्री मच्चातुनिकायाऽमर ... वक्ष्यते मल्लिषेणे ॥१॥ Closing जब तक समुद्रपर्वत तारागण आकाश चंद्र और सूर्य रहै तब तक यह भैरव पद्मावती कल्प भी रहे । Colophon: इति उभयभाषा कविशेखर श्री मल्लिपणसूरि विरचित भैरवपद्मावती कल्प की साहित्यतीर्थाचार्य प्राच्य विद्यावारिधि श्री चन्द्रशेखरशास्त्रीकृत भाषाटीका मे गारुडाधिकार नामका दशमपरिछेद समाप्तम् । इति सपूर्णम् । शुभमिति कार्तिक शुक्ला ४ वीर. संवत् २४६४ विक्रम संवत् १९९३ । देखें-(१) जि.र, को, पृ. २६६ । (2) Catg of ekt. & Pkt. Ms., P. 678, ६३६. भजन संग्रह Opening 1 Closing | हो वो सिले मोहे तेरि सगरी ॥टेक॥ तुम सुमिरत वत रिधि निधि पसरी, अजितहि व्रत कर घर पकरी ॥नि० ॥४॥ इति सम्पूर्णम् । Colophoni
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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