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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri lezakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhav 1.7, Arri.h
Clotirg! Colophon:
चन्द्रप्रभ जिन नत्वा सर्वज्ञ निजग रुम् ।
ब्रह्मविद्याविधि वक्ष्ये यथाविद्योपदेशतः ॥ धेनुमुद्रया सर्वोपचारं कृत्वा पूजाविधि परिसमापयेत् । नहीं है।
५६१. चन्द्रप्रभमंत्र
Opering !
ॐ चद्रप्रभो प्रभाधीश-बद्रशेखग्चभू । चन्द्रलक्ष्मकचन्द्राग चन्द्रवीजनमाऽस्तु ते ।।
- नित्य जपने ते मर्वमगल होय है। नहीं है।
Closing : Co'cphons
५६२. चौबीस तीर्थकर मंत्र
सव
Opening : आदिनाथमत्र। ॐही श्री चक्रेश्वरी अप्रतिनके
शातिं कुरु कुरु स्वाहा। Closing t - ... नित्य स्मरण करना सर्वकार्य सिद्ध होय । Colophon: इति श्री मत्र सम्पूर्णस् ।
५६३. चौबीस शासन देवी मंत्र
Opening :
मत्र के अन्त मे मरन माह नवसा अरण विद्वषण आकपनए सब .. .. ।
... धनार्थी आकपन करे ता धन बहुत पावे । नही है।
Closing Colcphon.
५६४. गणधरवलयकल्प
Opening : देवदत्तस्य नामाई कारेण वैष्टयेत् ।
ततोऽनाहतेन तस्याध कमक्षयार्थ अर्थप्राप्त्यर्थ पमासनम् शातिकोटि. सारस्वाधिकारासन [ शत्रुविनाशार्थ क्रूरप्राणिवश्या । डूरामन।