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________________ १७२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavian, Arrab Closing! इति श्री प्रभाचदविरचिते प्रयेयकमलमार्तण्डे परीक्षामुखाल. ___ कारे पष्ठ परिच्छेद सपूर्ण ॥ Colophon ; गभीरनिखिलार्थगोचरमल शिष्यप्रबोधप्रद . यद्व्यक्त पदमद्विचीयमखिल माणिक्य नन्दी प्रभो । तद्व्याख्यातमदोयथागमत. किंचन्मया लेशत स्वेया(?) बुधिया मनोरवतिगृहे चद्रार्कतारावधि ।। मोहभ्रातदिनाशनो निखिलतो विज्ञानवुद्धिप्रदो मेयानतनभोविमर्पणपटुर्वस्तु विभाभामुर शिष्याञ्चप्रतिवोधने समुदितो योग्रेपरीक्षामुखाज्जीयात् सोत्र निवधरावसुचिर मार्तण्डतुल्गोमल्पः ।।२।। गुरु श्री नदि माणिक्यनदिताशेषसज्जन नदता हरितकतर जार्जनमती ॥ श्री पद्मनदिसिद्धामतिशिष्योनेकगुणालय प्रमाचद्राश्चिर जीया । पदेरत इति श्री प्रमेयकमलमार्तण्डः सपूर्णतामगमत् । मिति प्रथमजेवा सुदी ६ सनीचरवार सवत् १८६६ का सपूर्ण हुवो ग्रथ विशेष -बाबू श्रीमधरदास आरेवाले की पोथी है। देखे -दि० जि० ग्र० र०, पृ०६८। जि० र० को०, पृ० २३८, २६६ ।। प्र० जै० सा०, पृ० १७७ ।। रा० सू० II, पृ० १६८। Catg. of skt & pkt. Ms.,,P.671. Catg. of skt. Ms., P.306. ४७५. प्रमेयकमलमार्तण्ड Opening सिद्धर्धाममहारिमोहहनन कीर्ते पर मन्दिर मिथ्यात्वप्रतिपक्षमक्षयसुख संशीतिविध्वसनम् ॥ मर्वप्राणिहित प्रभेन्दुभवन सिद्ध प्रमालक्षण सन्तश्चेतसि चिन्तयन्तु सतत श्री वर्धमान जिनम् ॥२॥ यत्तुशास्त्रान्तरद्वारेणापगतहेयोपादेयस्वरूपो न त प्रतीत्यर्थ ।। इति ॥ Closing a
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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