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________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Librury Jain Siddhant Bhavan Arrub Closing i सुखी होऊ पाठक सदा, श्रवणकरै चितधारि । बुद्धि विधि मगल कहा, होउ सदा विस्तारि ।। Colophont इति श्री देवागमस्तोत्र वनिका सम्पूर्णम् । शुभ मवत् १८६८ मासोत्तमे मासे अधिक आश्विनमासे शुम्लपक्षे द्वादश्या चन्द्रवासरे पुस्तकमिदं मपूर्णम् । लेखाकाक्षर रघुनाथशर्मा पट्टनपुरमध्ये आलमगज निवसति । शुभमस्तु । ४६१. देवागम वचनिका Opening : देखे-क्र० ४६० । Closing : अष्टादश सत साठि पट विक्रम संवत् जानि । चैत्र कृष्ण चतुर्थी दिवस, पूर्ण वचनिका मानि ।। Colophon : इति श्री देवागम स्तोत्र की वनिका सम्पूर्ण । ४६२. आप्त परीक्षा Opening , प्रवुद्धाशेषतत्त्वार्थ वोधर्दीधिधितमालिने । नम श्रीजिनचन्द्राय मोहध्वातप्रभेदिने ॥१॥ Closing | स जयतु विधानदो रत्नत्रयभूरिभूषणस्सततम् । ___ तत्त्वार्थार्णवतरणे सदुपाय प्रकटितो येन ॥ ॥ Colophon : इति श्री आप्त परीक्षा विद्यानदिश्चाचार्य ॥ समाप्तम् । सपूर्ण । शुभम् ।। देखे-(१' दि० जि प र,६१। (२) जि. र० को०, पृ. ३० । (३) प्र० ज०मा०, पृ० १०३ । (४) रा० सू० II, पृ १६३ । (५) रा. सू. III, पृ० १६६ । (6) Catg of Skt & pkt Ms, P. 625. ४६३. आप्त परोक्षा Opening : प्रवुद्धाशेषतत्वार्थ तोधदीधितिमालिने । नम श्री जिनचद्राय मोहध्वातप्रभेदिने।।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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