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________________ १६२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Librury, Jain Siddhant Bl.avan,Arrah ४५१. योगसार Opening ! भद्र भूरिभवाम्भोधि शोषिणी दोषमोषिणी। जिनेशशासनायालम् कुशासनविशासिने ॥११॥ Closing 1 श्रीनन्दनन्दिवत्स श्रीनन्दीगुरुपादाब्जपट्चरणः । श्रीगुरुदासो नन्धान्मुग्दमति श्री सरस्वति सूनुः ॥ Colophoni इति श्री योगसारमग्रह समाप्तम् । सवत् १९८६ विक्र मीये मासोत्तमेमासे कार्तिकमासे शुक्लपक्षे नवमीतिथी रविवासरे जैनसिद्धान्त भवने इद पुस्तके पूर्णमगमत् । देखे-जि. र० को०, पृ० ३२४ (१) । ४५२. योगसार Opening | देखें--ऋ० ४५१ । तस्याभवच्छतनिधिर्जिनचद्रनामा शिप्योनुतस्यकृति भास्करन (द)नाम्ना ।। शिप्वेण सस्तवमिम निजभावनार्थ ___ ध्यानानुग विरचित सुवितो विदतु ।। Colophon इतिध्यानस्तव समाप्त । विशेष अर्वाचीन लेख यह ग्रन्थ करीव १९५० विक्रम स० का ज्ञात होता है । ४५३.योगसार सटीका Opening ! णिम्मलझाण परट्ठिया कम्मकलक डहेवि । अप्पा लद्धर जेण परू ते परमप्पणवेवि ।। Closing : ससारह भयभीयएण जोगचद मुणिएण । अप्पा सवोहणकया दोहा इक्कमणेण ।। इति श्री जोगसारपथ समाप्त । जैनसिद्धान्त भवन आरा मे लिखा। हस्ताक्षर रोशनलाल जैन। शुभमिति कार्तिक शुक्ला १२ शनिवार श्री वीर सम्वत् २४६२ श्री विक्रम संवत् १९९२। इति सपूर्णम् ।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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