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श्री जैन सिद्धान्तभवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant E709/7, Artoh
Closing : Colophon
देखे--ऋ० ४३९ । इति श्री भट्टारक श्री शुभचन्द्र शिष्याचार्य श्री सकलभूगण विरचितायमुपदेशरत्नमालाया पुण्यषटकर्मप्रकाशिकायां तपोदान माहात्म्यवर्णनोनामष्टादश परिच्छेद १८॥ मितीफागुनसुदी ॥३॥ भृगुवासरे ।। सम्वत् ।।१६७०।। लिखितमिद पुस्तक मिश्रोपनामक गुलजारीलालशर्मणा भिडागनगरवासोस्ति ॥ इस ग्रन्थ की श्लोक सख्या ॥३६००॥ प्रमाणम् ॥
४४१. वैरागसार सटीक
Opening इक्कहिं घरेवधामणा अण्णहिं घरि धाहहि रोविज्जइ ।
परमत्यई सुप्पउ भणई किमवइ सयभाउण किज्जइ ।। Closing : ____ असौ जीव चतुर्गतिपु अनतदु खानि भुजति । कदा- .
चित् सुख न प्राप्नोति । Colophon · इति सुप्रभाचार्यकृत वैराग्यसार प्राकृत दोहावध सटीक
सपूर्ण । सवत् १८२७ वर्षे मिति पौष वदि ३ बुधवारे वसवानगर. मध्ये श्री चन्नप्रभचैत्यालये पडित जी श्री परसराम जी तशिष्य प० अणतराम जी ततशिप्य श्रीचद्र स्ववाचनार्थ वा उपदेशार्थ लिपिकृत। लेखकपाठकयो शभमस्ति। श्रीजिनराजसहाय । तत्लिपे सवत् १९८६ विक्रमीये मासोत्तमेमासे कातिकमासे शुक्लपक्ष चतुर्दश्या गुरुवासरे आरानगरे स्व. देवकुमारेण स्थापित श्री जैनसिद्धान्तभवने श्री के० भुववलीशास्त्रिग अध्यक्षताया इद प्रतिलिपि पूर्तिमभवत् । इति शुभ भूयात् ।
देखें-जि० र० को, पृ० ३६६ ।
४४२. वसुनन्दि श्रावकाचार वचनिका
Opening!
वटू मै अरिहतपद, नमू सिद्ध शिवराय । सूरि सु पाठक साधुके, चरण नमू सुखदाय ॥१॥ वर श्री जिनवैन कू, वदू श्री जिनधर्म । जिनप्रतिमा जिनभवन कू नमू हरण वसुकर्म ॥२॥ ऋपि पूरण नव एक फुनि, माधव फुनि शुभ स्वेत। जया प्रथम कुजवार मम, मगल होऊ निकेत ।।
Closing .