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________________ १५६ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavian, Arrab पद्माराधकेन श्री जिनसेनाचार्येण विरचिते त्रिवर्णाचारे उपासकाध्ययनसारोद्धारे सूतकशुद्धि कथनीय नाम अप्टादश पर्व ॥१५॥ सवत् १९१६ वार मगलवारे लि कोठारी मोहनलाल मु गरशी ॥ रहेवाशी बडवाण शे हेरना ।। श्लोक संख्या ८५२५ ।। ४३६. त्रिवीचार वचनिका Opening : देखें-क्र० ४३२। Closing : जयवतो यह शास्त्र शुभ भूमडल में नित्त । मंगलर्ता हू जियो सुखकर्ता भविचित्त ।। इति त्रिवर्णाचार ग्रन्थ की वचनिका समाप्तम् । ज्येष्ठ शुक्ला १५ शनिवासरे यवत् १९५६ । ४३७. त्रिवर्णी शौचाचार (७ परिच्छेद) Opening : देखें--ऋ, ४३० । Closing : आपं यद्यच्च तेषामुदितखनयान्तनापुण्यभाजः । मेतत्त्रवणिकाद्याचरणविधिमहाकरिठका कण्ठमेति ।। Colophon: इत्यार्पसग्रहे वणिकाचारे नित्यनैमित्तिकक्रमो नाम सप्तम परिच्छेद ॥ श्रीमदादिनाथाय नमः ॥ श्रीमद्विद्यागुरु श्री मदन तमुनये नम ॥पुस्तकमिद श्री वेणुपुरस्थगीर्वाणपाठशालाध्यापकनेमिराजय्याज्ञानुसारेण सक्रमणात्मजेन पद्मराजनाम्ना मया प्रणीतमस्ति मगलमस्तु चिर भूयात् । करकृतमपराध क्षन्तुमर्हन्ति सन्त इति विरम्यते । श्रीरस्तु । ४३८. उपदेश रत्नमाला Opening: तिहुवण परमेसरेहइवमीसरे अनतचतुष्टय महियो। वदमि श्रुतमारणे कबुपसारणे सुरनरेन्द्र महिमहियो ।। Closing : मी अवियाणिधरौं अणलगत्त अपहुछद हीणय । सवार सुबुधिपडित जनतुमती जगि पमाणय ॥ Colophon इति श्री महापुराणसम्बन्धिनिकलिका ममाप्ता। शुममिति फागुन शुक्ला २ वृहस्पतिवार वीर स० २४६० वि० स. १६६० ।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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